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अणुभागविहची १. एत्तो अणुभागविहत्ती' दुविहा-मूलपयडिअणुभागविहत्ती चेव उत्तरपयडिअणुभागविहत्ती चेव । २ एत्तो मूलपयडिअणुभागविहत्ती भाणिदव्वा ।
अनुभागविभक्ति अब स्थितिविभक्तिकी प्ररूपणाके पश्चात् अनुभागविभक्ति कही जाती है । आत्माके साथ सम्बन्धको प्राप्त हुए कर्मोंके स्वकार्य करनेकी अर्थात् फल देनेकी शक्तिको अनुभाग कहते है । इस प्रकारके अनुभागका भेद या विस्तार जिस अधिकारमे प्ररूपण किया गया है, उसे अनुभागविभक्ति कहते है। उसके भेद बतलाते हुए चूर्णिकार अनुभागविभक्तिका अवतार करते है
चूर्णिसू ०-वह अनुभागविभक्ति वह दो प्रकारकी है-मूलप्रकृतिअनुभागविभक्ति और उत्तरप्रकृतिअनुभागविभक्ति ॥१॥
विशेपार्थ-मूल कर्मोंका अनुभाग जिस अधिकारमें कहा जाय, उसे मूलप्रकृतिअनुभागविभक्ति कहते है और जिसमे कर्मोंकी उत्तरप्रकृतियोके अनुभागका निरूपण किया जाय, उसे उत्तरप्रकृतिअनुभागविभक्ति कहते है ।
___ मूलप्रकृतिअनुभागविभक्तिकी प्ररूपणा सुगम है, इसलिए उसका वर्णन न कर केवल सूचना करते हुए यतिवृपभाचार्य उत्तरसूत्र कहते है
चूर्णिसू०-इन दोनोमेसे पहले मूलप्रकृतिअनुभागविभक्ति कहलाना चाहिए ।।२।।
विशेपार्थ-जिन अनुयोगद्वारोसे महावन्धमे अनुभागवन्धका विस्तृत विवेचन किया गया है, तथा प्रस्तुत ग्रन्थमे आगे उत्तरप्रकृतिअनुभागविभक्तिका विशद वर्णन किया जायगा, उनके द्वारा मूलप्रकृतिअनुभागविभक्तिका वर्णन करना चाहिए, ऐसी जो सूचना चूर्णिकारने की है, उसका कुछ स्पष्टीकरण यहाँ किया जाता है । अनुभाग क्या वस्तु है, इस वातके जाननेके लिए सबसे पहले निपेकप्ररूपणा और स्पर्धकप्ररूपणाका जानना आवश्यक है। कॉम फल
१ को अणुभागो कम्माण सगकजकरणसत्ती अणुभागो णाम । तस्स विहत्ती भेदे पवचो जम्हि अहियारे परूविजदि, सा अणुभागविहत्ती णाम । जयध०
२ एत्तो अगुभागबधो दुविधो-मुलपगदिअणुभागवधो चैव उत्तरपगदिअणुभागवधो चेव । एत्तो मूलपगदिअणुभागवधो पुव्ध गमणिज । तत्थ इमाणि दुवे अणियोगहाराणि णादवाणि भवति । त जहा-णिसेगपलवणा फहयपवणा य । णिसेणपावणदाए अहह कम्माण देसघाटिफयाण आदिवग्गणाए आदि कादूण णिसेगो । उवरि अप्पडिसिद्धं ।xxx फदयपल्वणदाए अणताणताण अविभागपइिच्छेदाण समुदयसमागमेण एगो वग्गो भवदि । अण ताणताण वनगाण समुदयसमागमेण एगा वगणा भवदि ।