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## Chapter 5: Explanation of the Chapters
**Verse 5:**
There are fifteen chapters in the **Darsan-Moh-Upa-Shamana** (Suppression of the Delusion of Perception) chapter. There are five chapters in the **Darsan-Moh-Kshapana** (Destruction of the Delusion of Perception) chapter. ||5||
**Explanation:**
The **Darsan-Moh-Upa-Shamana** chapter describes the consequences of a being who suppresses the **Darsan-Mohaniya Karma** (Delusion of Perception Karma). It explains the various yogas, leshyas, kshayas, and vedas associated with such a being. This chapter begins with the verse "**Darsan-Moh-Upa-Shamana**" and ends with the verse "**Samm-Aichchhaitthi Sagaro Va**". There are fifteen chapters in this chapter, bringing the total number of chapters to fifty (3+4+7+16+5+15=50).
The **Darsan-Moh-Kshapana** chapter describes the destruction of the **Darsan-Mohaniya Karma**. It explains which beings destroy this karma, the destruction of which karma-prakritis leads to **Kshayik-Samyak-Tva** (Perfect Knowledge), the duration of the destruction of **Darsan-Moh** in different gatis, etc. This chapter begins with the verse "**Darsan-Moh-Kshapana-Pattava-Ggo**" and ends with the verse "**San-Kheja Cha**".
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गा०५]
अधिकार-गाथा-निरूपण
दंसणमोहस्सुवसामणा पण्णारस होंति गाहाओ । पंचैव सुतगाहा दंसणमोहस्स खवणाए ||५||
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विशेषार्थ - राग-द्वेपके उत्पादक कषाय है और कपायोका मूल आधार मोहकर्म है । राग-द्वेष या कषायों के वेदनको - उदयको - प्रतिपादन करनेवाला वेदक नामका अर्थाधिकार है । इसमें 'कदि आवलियं पवेसेइ' इस गाथाको आदि लेकर 'जो जं संकामेदि य' इस गाथा तक चार सूत्रगाथाएँ हैं । इस अर्थाधिकार तक सूत्र गाथाओकी संख्या सात (३+४ = ७) होती है । कषायोका उपयोग कितने काल तक रहता है. किस गतिके जीव किस कपायमे कितनी देर तक उपयुक्त रहते हैं, इत्यादिरूपसे कषायोमे उपयुक्त दशाका वर्णन करनेवाला सातवा अर्थाधिकार है । इसमे 'केवचिरं उवजोगो' इस गाथासे लेकर 'उवजोग-वग्गणाहि य अविरहिदं' इस गाथा तक सात सूत्रगाथाएँ हैं । इस अर्धाधिकार तक सूत्रगाथाओकी संख्याका योग चौदह (३+४+७ = १४) होता है । अनन्तानुबन्धी आदि कषायोके शैलरेखा, पृथिवी - रेखा, धूलिरेखा और जलरेखा, इन चार स्थानोसे वर्णन करनेवाले अर्थाधिकारको 'चतु:स्थान' अर्थाधिकार कहते है । इस अर्थाधिकार मे 'कोहो चउव्विहो वृत्तो' इस गाथासे लेकर 'असण्णी खलु बंधइ' इस गाथा तक सोलह गाथाऍ निबद्ध हैं । यहाँ तक समस्त सूत्रगाथाओ की संख्या तीस (३+४+७+१६= ३०) होती है । क्रोधादि कपायोके एकार्थकपर्यायवाची नामोको प्रतिपादन करने वाला 'व्यंजन' नामका अर्थाधिकार है । इस अधिकारमे 'कोहो य कोप रोसो य' इस गाथासे लेकर 'सासद पत्थण लालस' इस गाथा तक पाँच सूत्र - गाथाएँ सम्बद्ध हैं । यहाँ तक सर्व सूत्रगाथाओकी संख्या पैतीस (३+४+७+१६+ ५ = ३५) होती है ।
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दर्शन मोह - उपशामना नामका दशवाँ अर्थाधिकार है, उसमें पन्द्रह सूत्रगाथाएँ निबद्ध हैं | दर्शनमोह-क्षपणा नामका ग्यारहवाँ अर्थाधिकार है, उसमें पॉच ही सूत्रगाथाएँ निवद्ध हैं ||५||
विशेषार्थ - दर्शनमोहनीय कर्म के उपशमन करनेवाले जीवके परिणाम कैसे होते हैं, उसके कौन कौनसे योग, कौन कौनसी लेश्याऍ, कषाय, वेद आदि होते हैं, इत्यादि वर्णन करनेवाला दर्शनमोह - उपशामना नामका दशवॉ अर्थाधिकार है । इसमे 'दंसणमोहस्सुवसा - मगो' इस गाथासे लेकर ' सम्मामिच्छाइट्ठी सागारो वा' इस गाथा तक पन्द्रह सूत्रगाथाएँ सम्बद्ध हैं । इस अधिकार तक समस्त गाथाओकी संख्या पचास ( ३+४+७+१६+ ५ + १५ =५० ) होती है | दर्शनमोहनीयकर्मका क्षय कौन जीव करता है, किन किन कर्म - प्रकृतियोके क्षय होनेपर क्षायिकसम्यक्त्व होता है, किस किस गतिमे और कितने काल तक दर्शनमोहकी क्षपणा होती है, इत्यादि वर्णन दर्शन मोह-क्षपणा नामके ग्यारहवें अर्थाधिकारमे किया गया है । इस अधिकार मे 'दंसणमोहक्खवणापट्टवगो' इस गाथासे लेकर 'संखेजा च