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________________ ___ कांति ( भीतरी दरवाजे की ओर धूप की तड़क देखती हुई ) तुम्हारे भैया के घर ही तो जाना है ! आज कीर्तन है न ! तुम नहीं गई ? निरंजना भैया के यहाँ क र्तन ! कांति हाँ, वे ही तो बुला गए थे सबेरे ! (हँसती है ) और तुम्हें पता भी नहीं ? निरजना भैया के तो नहीं है कीर्तन । सुना है पड़ोम में किसी भौर के यहाँ है । भाभी जायँगी वहाँ। उन्होंने कहलाया भी था चलने के लिए ; पा मैं नहीं गई। कोति पर... तुम्हारे भैया भाये थे बुलाने और ( कुछ संकोच से ) मालती के यहाँ भी गये थे। [निरंजनों कुछ उत्तर नहीं देतीं ; सोच में पड़ जाती है । कांति बार-बार उसका मुँह ताकती है। उसकी समझ में कुछ आता नहीं। निरंजना (शची से ) बेटी, पानी तो ला जरा । (शची शीघ्रता से जाती है । कुछ देर मौन रहकर ) मालती जा रही है ?
SR No.010395
Book TitleKarmpath
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremnarayan Tandan
PublisherVidyamandir Ranikatra Lakhnou
Publication Year1950
Total Pages129
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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