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शची
बड़े अच्छे हैं सेठ की। बाबू जी जब बाहर गये थे तब रोज आते थे यहाँ।
काति ( कुछ सोचती हुई ) हाँ, कभी कभी आते थे।
शची फल-मिठाई भी लाते थे। मुझे पैसे देते थे। अज भी दे गये थे एक इन्नी मुझे।
[ कांति सहसा चौंक पड़ती है। माथे पर पसीने की महीन फुहार-सी झलकने लगती है । उन्हें पोंछ कर वह पंखा हाँकनी है।
निरंजना का मुस्कराते हुए प्रवेश । कांति आगे बढ़कर उसका स्वागत करती है और आश्चर्य से उसकी अोर इस तरह देखती है जैसे इस समय उसके आने का कारण जानना चाहती हो।
निरंजनाकीर्तन वाले सेठ की बहन । अवस्था लगभग पचीस वर्ष । गोरा रंग, चेहरा-मोहरा बहुत आकर्षक ; वस्त्राभूषणों से अलंकृत होने पर पर सुंदरता और भी बढ़ जाती है। सफेद सिल्क की बढ़िया सारी जम्पर पहने है । बात-बात में हँसती है । कंठ भी रसीला है। ]
निरंजना तुम तो कहीं जाने को तैयार हो जैसे !