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( ७१ )
कांति
(
चौंक कर ) कैली पहेलियाँ बुझा रहो हो ? बात क्या साफ कहो, क्या कहती हो ?
"वे
है ?
मालती
बताऊँगो फिर कभी । संपादक जी हैं ?
कांति
( उपेक्षा से ) मुझे क्या मालूम ? कहीं गये होंगे । मालती
ऐसी लू धूप में इन्हें बाहर न जाने दिया करो इस तरह | सुना तुमने दस-बारह आदमिया को लू लगी कल ( कांति चौंक पड़ती है ) किसी जरूरी काम से गए हैं वे ?
कति
क्य जाने क्यों गए हैं । ( बाहर की ओर देखकर ) लू तो बड़ी तेज है आज | मेरे काम से। कोई क्या जाने किसी के मन की बात ?
मालती
जानती हो तुम जरूर । आँखें कह रही हैं तुम्हारी । ( मुस्कराती है ) मुझे बताना नहीं चाहतीं तो जाने दो ।
कांति
( हँस कर ) रूठ गई ! मुझे ठीक नहीं मालूम कि काहे के लिए गए हैं। 'बस, अभी आया मैं जरा देर में' कह कर चले