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कांति (स्मृति में विभोर होकर ) तेरह वर्ष पहले के जब.. जब विवाह हुआ था मेरा, तबके।
शची ( बड़ी रुचि से ) विवाह में सबको खूब अच्छे अच्छे कपड़े मिलते हैं माँ ?
कांति सबको नहीं, जिनके भाग्य....""(पुत्री की ओर सस्नेह देखकर) पर तुझे तो खूब ""ऐसे ही घर ब्याहूँगी तुझे जहाँ से खूब बढ़िया ढ़िया गहने कपड़े मिलें तुझे। ( बात रोक कर ) जरा पान तो ले या बेटी! [ शची जाती है । मालती का शीघ्रता से प्रवेश ।
मालतीबाइस वर्ष की गोरी युवती । दुबली-पतली, पर स्वस्थ । हँसी उसके मुख पर इस तरह खेलती है जैसे विकसित कलियों पर सुकुमारता । इकलाई की साधारण साड़ी पहने है। माँग में सेंदुर
और मुख पर लाल छोटी बिंदी खूब खिलती है। पैर में मामूली चप्पल है। हाथ में एक पत्रिका लिये है।
कांति मुस्कराकर उसका स्वागत करती है। दोनों डेस्क के पास की चटाई पर आकर बैठ जाती हैं।]