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( १२६ ) डकरायगी, तब मैं सांत्वना देने का प्रयत्न करूंगा, आह ! पुत्र का हत्यारा माता की सेवा करेगा। खूब रहा ! (दोनों शिष्यों से) भाइयों, तुम साक्षी हो, गुरुवर ने मुझे क्षमा कर दिया है। इसी प्रकार माता से भी क्षमा करवा देना ।... परन्तु क्या मेरा हृदय मुझे क्षमा करेगा ? श्रोह, पश्चाताप की ज्वाला भीतर ही भीतर सुलग कर मुझे सदैव जलाती रहेगी । संसार मुझ पर थूकेगा, मेरी छाया से, मेरे नाम से घृणा करेगा, तभी इस कलंकी हृदय को शांति मिलेगी। मेरे लोभ ने गुरुदेव की हत्या की है, हत्यारा, पापी मैं"....।
[चौथा शिष्य मूर्छित होकर माता मरियम के समीप गिर पड़ता है । पहला शिष्य माता पर और दूसरा, मूर्छित शिष्य पर हाथों से हवा करता है]