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भारतोय ( ससंकोच) तुमने तो भारत की प्रशंसा के पुल बाँध दिये हैं।
ईसा प्रशसा नहीं, ये हृदय के उद्गार हैं ! अपने देश में प्रेम, विश्वास और धर्म के नाम पर घोर पाखंड का प्रचार जब मैं देखता हूँ तभी स्वभावतः मुझे उस देवभूमि की याद आ जाती है जहाँ मेरे जीवन का स्वर्णकाल बीता था; जहाँ मैंने शिक्षा प्राप्त की थी।
पहला शिष्य (भारतीय पर जिज्ञासु की दृष्टि डालकर ईसा से) उस देवभूमि की और क्या विशेषताएँ हैं !
ईसा विशेषताएँ ! विशेषताओं की चर्चा करने का समय ही अब कहाँ है ! कुछ देर बाद"........? बस, इतने में ही भारत का महत्व समझ लो कि वहाँ के लोग स्व-पर के आधार से ऊपर उठकर परदेशी को भी भाई मानते हैं।
पहला यहाँ भाई-भाई को शत्रु और अविश्वासी समझता है।
दूसरा यह पारस्परिक शत्रुता और अविश्वास हमारे राजा के अत्याचार का ही तो फल है।