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( ५१ ) गगनंबरं व कत्थइ पयंतं अइवेगचंचलं सिहि ॥ १४ ॥ ४६॥
निर्धूम अग्नी. चवदवे स्वप्न में त्रिगला देवी ने निधूम अग्नी देखी जो जलती थी और उसमें से लाल पालेरंग की ज्वालाएं निकलती थीं मधु और घी से सींची हुई निधूम अग्नी धगधगायमान जलती ज्वालाओं से मनोहर अत्यन्त ऊंची २ ज्वालाऐं जानी है जिसकी ऐसी निधूम अग्नी देखी..
हमे एयारिसे सुमे सोमे पियदंसणेसुरूवे सुविणे दळूण सयणमज्झे पडिबुद्धा अरविंदलोयणा हरिसपुलइअंगी ॥ एए चउदस सुमिणे, सबा पासेइ तित्थयरमाया । जं स्यर्णि व कमई, कुच्छिसि महायसो अरहा ॥४७॥
चौदह स्वप्न. पूर्व में कहे हुवे (विस्तार पूर्वक कहे हुवे ) हाथी बैल सिंह लक्ष्मी देवी का अभिषेक पुष्पों की दो मालाएं चन्द्र, सूर्य, ध्वना, कलश, पनसरोवर, क्षीरसागर, देव विमान रत्नों का ढेर निधूम अग्नी ऐसे शुभ सौम्य, प्रिय दर्शन अच्छे रूप वाले स्वप्न देखकर शय्या में जागी और विकस्वर कमल नेत्रवाली हर्प से खिलती रोगराजी वाली त्रिशला राणी ने उत्तम चवदह स्वप्न देख ऐसे ही सर्व तीर्थकरों की माताएं देखती है जिस समय कि तीर्थकर भगवान उटर में आते हैं क्योंकि तीर्थकर भगवान महापुण्यात्मा यशस्वी पूजनीय होते हैं.
तएणं सा तिसला खत्तियाणी इमे एयारूवे उराले च3इस महासुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा समाणी हद्वतुट्ट-जाव हियया धाराहयकयंवपुप्फगं पिव समस्ससिअरोमकूवा सुविगुग्गहं करइ, करित्ता सयणिज्जायो अभुढेइ, अन्भुट्टित्ता पायपीढाओ पनोरुहइ, पञ्चोरुहिता अतुरिअमचवलमसंभंताए