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देव विमान का वर्णन । वारहवें स्वप्न में त्रिशला देवी न देव विमान देखा वो देव विमान चढ़ने हुवे मूर्य के समान प्रकाशमान दिव्य शांभा वाला उत्तम सान के मणि माणिक से जड़िन १००८ बम जिसमें है और जिससे वो आकाश में दीपक के समान शांभायमान होरहा है साने की जिसकी छत हैं और जिन छतों में मांतियों के झुमके वा मालाओं के लगने से शांभा अधिक मालुम होती है और उसकी भीतों में रहा मृग सिंह बैल घोड़ा मनुष्य हाथी इत्यादि अनेक चित्र है बनलता पद्यन्नता इत्यादि चित्रित है और जिस विमान में नाटक होरहे थे वाजिंत्र का राग मनोहर दोरहा था जिसमें मेघ गर्जन के समान देव इंदुभी का गब्द होरहा था जिमकी श्वनी सर्वत्र आकाश में फैल रही थी और जहां कालागुरु उत्तम कुंदरक इन्यादि अनेक उत्तम जानि के धूप होम्हें ये पला मुगंध से मघ मघावमान, मुंढर मनोहर दग्वने योग्य देवनाओं से भग हुवा श्रेष्ठ पुंडरिक विमान त्रिशला गणी ने देवा.
तम्रो पुणो पुलगवेरिंदनीलमासगकक्कयणलोहियस्खमरगयममारगल्लपवालफलिहसोगवियह लगभग्रंजणवंदप्पहबररयणहिं महियलपइट्टिग्रं, गगणमंडलंतं पभामयंतं, तुंगं मरुगिरिमनिकास पिच्छह सा रयणनिकररासि १३ ॥ १५ ॥
रत्नों का ढेर का वर्णन. उसके बाद नरहवें स्वप्न में त्रिशला राणी न वदुर्य रत्न वन, इन्द्र, नील शासक, कर्केनन, लोहिनान मरकन मसारगल्ल प्रवाल स्फटिक सांगधिक इंसगर अंजण चन्द्रप्रभ इत्यादि अनेक जाति के श्रेष्ठ रत्नों का ढेर जा पृथ्वी से आक्राम नक देदीप्यमान मेरु पर्वन के समान कंत्रा २ लगा हुवा था देखा.
सिहं च-सा विउलुज्जलपिंगलमहुघयपरिसिञ्चमाणनिमधगधगाइयजलंतजालुज्जलाभिरामं तरतमजोगजुत्तेहिं जालपयरहिं अगणुगणमिव अणुप्पहणणं पिच्छइ जालुज्जल