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(२१२) हो तो गांचरी न जाने चाई थोड़े बिंदु भी क्यों न वर तो भी जिन कल्पी गोचरी न जावे.
वासावासं पज्जोसवियस्स पडिग्गधारिस्स भिक्खुस्म नो कप्पड वग्धारियवृहिकायसि गाहावाकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, कप्पइ से अप्पबुट्टिकायसि संतरुत्तरंसि गाहावइकुलं भत्ताए चा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ ३१॥
जिन कल्पि विना जो स्थविर कल्पि साधु हो तो उनका अखंडित मंघ की धास वर्षे तब गोचरी नहीं जाना परन्तु अल्प वृष्टि होनो कारणवश से गोचरी जाना कल्प उस वक्त मृत्र के कपड़े पर कम्बल ओढकर जासक्ते हैं (यहां बताया है कि कोई देश में वृष्टि होने वाद भी थोड़ी दृष्टि सारा दिन भी रहती है और छोटे वा क्षुधा पीडित साधुओं को असमाधि होचे तो वारीक वृष्टि में भी कम्बली आहकर गोचरी जासक्तं है ).
(अं० ११००) वासावासं पजोसविपस्स निग्गंथस्स निग्गंथीए वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठस्स निगिझिय २ वुष्टिकाए निवइज्जा, कप्पड़ से अहे अारामंसि वा, अहे उवस्मयंसि वा अहे वियडगिहसि वा अहे रुक्खमूलंमि वा उवागच्छित्तए ॥ ३२ ॥ ___ गोचरी जात रास्ते में वृष्टि ज्यादा होवे तो ज्यान में वा उपाश्रय नीचे, वा जादिर मकान नीच अथवा वृक्ष (पड़ ) की नीचे खड़े रहसक्त है. ___ तत्थ से पुवागमणेणं पुवाउत्ते चाउलादणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पड़ से चाउलोदणे पडिगाहित्तए, नो से कप्पड भिलिंगसूबे पडिगाहित्तर ॥ ३३ ॥