________________
(२११) निवयमाणंसि जाव गाहावइकुलं भ० पा० निक्ख पविसित्तए वा ॥ २८ ॥ ___ जब दृष्टि थोड़ी भी होती हो ऐसे समय पर जिन कल्पी साधु गोचरी न जावे ( जिन कल्पी साधु जम्बू स्वामी के वाद नहीं होते हैं वो कल्प विच्छेद होगया है)
वासावासं पज्जोसवियस्स पाणिपडिग्गहियस्स भिक्ख. स्स नो कप्पइ अगिहसि पिंडवायं पडिगाहित्ता पज्जोसवित्तए, पज्जोसवेमाणस्स सहसा बुट्टिकाए निवइज्जा देसं भुचा देसमादाय से पाणिणापाणिं परिपिहिता उरांसि वा एं निलिजिजज्जा, कक्खसि वाणं समाहडिज्जा, अहाछन्नाणि वा लेणाणिं वा उवागच्छिज्जा, रुक्खमूलाणि वा उबागच्छिज्जा, जहा से तत्थ पाणिसि दए वा दगरए वा दगफुसियावा नो परिभावज्जइ ॥ २६ ॥
जिन कल्पी साधुको उपर से न ढका हो ऐसी जगह में गोचरी करनी न कल्पे कदाचित् वैठ गये और वृष्टि आजावे तो जितना वचा हो वो लेकर दूसरे हाथ से वा छाती से कांख में ढककर ढके हुए मकान में जाकर गोचरी करे घर न मिले तो पेड़ के नीचे चला जावे कि जिससे पानी के विंदुओं से संघटन होकर वे पानी के जीवों को पीडा न होवे.
वासावासं पज्जोस वियस्त पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स जं किंचि कणगफुसियमित्तंपि निवडति, नो से कप्पड़ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसि. त्तए वा ॥ ३०॥
सूत्र २९ में बताया कि जीवों को पीडा न हो इसलिये सूत्र ३० में बताया • कि प्रथम से जिन कल्पि उपयोग देकर जानकर रास्ते में पानी आने का मालुम