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(२१.) एस्स चत्तारि पाणगस्स । तत्थ णं एगा दत्ती लोणासायणमित्तमवि पडिगाहिया मियाकप्पद से तदिवसं तेणेव भत्तटेणं पज्जोसवित्तए, नो से कप्पइ दुचंपि गाहावडकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्वमित्तए वा पविसित्तए वा ॥ २६ ॥
साधुओं को पांच दत्ती चामासा में निग्नर लेनी क्ले, पांच भांजन की और पांच पानी की अथवा ४ भोजन की ५ पानी की अथवा पांच भोजन की ४ पानी की लेनी किंतु दत्ता में जो अनाज में नमक समान अर्थात् थोड़ी वस्तु भी आजावं ना उस दिन इतना ही खाना चाहिये किन्तु दुसरी वक्त नहीं जाना चाहिय. ___ एक वक्त में जितना ग्रहम्पी देव वा दत्ती गिनी जाती है ( उसका प्रयोजन यह है कि स्वाद के लिय वा विना श्रम ग्रहन्धिों का माल खाकर साधु प्रमाद कर दुर्गति में न जात्र)
वासावासं पज्जोसवियाणं नो कप्पड निरगंथाण वा निगंधीण वा जाव उवस्सयानो सत्तघरंतरं संस्खडि संनियट्टचारिस्स इत्तए, एगे पुण एवमाहंयु-नो कप्पड़ जाव उवस्सयायो परेण सत्तघरंतरं संखडिं संनियट्टचारिस्स इत्तए, एगे पुण एवमाहंसु-नो कप्पड़ जाव उपस्सयारो परंपरणं संखडि संनियट्टचारिस्स इत्तए ॥ २७ ॥
साधु साध्वी को चौमासे में उपाश्रय स ७ घर नजदीक में हो उस में जिमण हो तो वहां गोचरी जाना न कल्प, काई आचार्य कहते हैं कि उपाश्रय को अलग मान सात घर छोड़ना चाहिये कोई कहते है कि उपाश्रय से परंपरा - के घरों में जिमनवार में गोचरी नहीं जाना (जिमन में साधु को गोचरी जाना मना है परन्तु उपाश्रय के निकट घरों में तो अवश्य नहीं जाना )
वासावासं पज्जोसवियस्स नो कप्पड़ पाणिपडिग्गहियस्स. भिक्खुस्स कणगफुसियमित्तमवि वुट्टिकायसि निवयमाणंसि