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(१४७) भूति पुरोहित था उसकी अनुद्धरी नामकी भार्या से कमट और मरुभूति ऐसे दो पुत्र हुए वाप के मरने पर कमठ को पुरोहित का पद मिला उसमे घमंड में भाकर मरुभूति की ओरत से दुराचार कृत्य किया. मरुभूति ने राजा को फरयाद की राजा ने मरुभूति को निकाल दिया, उसने गांव बहार जाकर तापस की दीक्षा ली और तापस होकर गांव में पाया मरु भूति जो पुरोहित हुआ था. उसने कमठ तापस को मस्तक नवाकर पूर्व अपराधकी क्षमा चाही परन्तु पूर्व रको यादकर के जोरसे बड़ा पत्थर मारा, मरुभूति मरगया.
दूसरे भवमें मरुभूति सुजातक नामका हाथी विध्याटवी में हुआ कमठ का जीव कुर्कुट नामका उडता सपं हुआ. अरविंद मुनि को उद्यान में देखकर हाथी को जाति स्मरण ज्ञान हुआ मुनि के पास श्रावक के ( ११ व्रत लेकर मुनिको चंदन कर गया, सर्प को पूर्व वैरमे द्वेप हुआ और दंश किया हाथी शुभ भाव से मरगया. __ तीसरे भवमें मरुभूति ( हाथी ) का जीव आठवां देवलोक में गया और सांप पांचवी नर्क में गया चोथे भवमें मरुभूति ( देव ) जंबूद्वीप के महा विदेह क्षेत्रमें सुकच्छ नामकी विजय में वैताब्य पर्वत की दक्षिण आणि में तीलवती नगरी में करणवेग नाम का राजा हुआ. राजाने वैराग्य से दीक्षा ली और विहार कर हैमशैल पर्वत के शिखर पर खड़े थे वहां कनठ का जीवनरक में से आकर सर्प हुआ उसने मुनिराज को काटा. शुभ ध्यान से मुनि मरगये.
मुनिराज पांचवां भव में बारहवां देवलांक में देव हुए और सर्प मर कर पांचवीं नरक में गया छठा भव में वह देवता जंबुद्वीप के महा विदेह में गंधीलावती विजय में शुभंकरा नगरी में वज्र नाम का राजा हुआ टेमकर तीर्थकर के पास देशना सुन वैराग्य माने से दीक्षा ली विहार करते निज्वलन पर्वत पर ध्यान में खड़े थे कमठ का जीव मरकर भील हुआथा उसने तीर मार माण लिये. सातवां भव में मुनि मध्यम ग्रेवयक में देव हुए मुनिघातक सानवीं नरक में गया.
आठवां भव में देव जंवृद्वीप के महाविदेह क्षेत्र में शुभंकग विजय में पुराण पुर नगर में सुवर्ण बाहुचक्रवती हुए वृद्धावस्था में तीर्थकर की देशना सुन वैराग्य से दीक्षा लेकर वीश स्थानक नप श्राराधकर तीर्थकर नाम कर पांघा कमठ मक से आकर मिह हुआ था उगने मुनि को मार डाले.