________________
( १४६ )
विसाहाहिं जाए, विसाहाहिं मुंडे भवित्ता थगा रात्री श्रणगारिथं पव्वड़ए, विसाहाहिं यांत अणुत्तरे निव्वाधार नि रावरणे कसिणे पडिपुराणे केवलवर नाणदंसणे समुप्पन्ने, विसाहाहिं परिनिब्बु ॥ १४६ ॥
पार्श्व प्रभु का चरित्र
पार्श्वनाथ प्रभु के च्यवन जन्म दीक्षा केवल ज्ञान और मुक्ति पांच कल्याणक विशाखा नक्षत्र में चन्द्रयोग थाने पर हुए | (विशेष वर्णन महावीर प्रभु समान जान लेना )
तेणं कालणं तेणं समएणं पासे रहा पुरिसादाणीए जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढने पक्खं चित्तबहुले, तस्स एवं चिबहुलस्म उत्थीपकखेणं पाणयायो कप्पा वीससागरोवमट्ठेिद्द्याद्यो यणंतरं चयं चत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे वाणारसीए नयरीए ग्रास सेणस्स रण्णो वामाए देवीए पुव्वरत्तावरन्तकालसमयसि विसाहाहिं नक्वणं जोगसुवागएणं श्राहारवक्कंतीए (ग्रं० ७०० ) भववकंतीए सरीरवकंतीए कुच्छिसि भत्ता वते ॥ १५० ॥
पार्श्वनाथ प्रभु पुरुषों को विशेष स्मरणीय है वे ग्रीष्म ऋतु का पहिला मास चैत्र बढी ४ के रोज प्राणन कल्प से १० वां देवलोक से २० सागरोपम की स्थिति पूरी कर इस जंबुद्वीप के भरत क्षेत्र में बाणारसी नगरी में अश्वसेन राजा की वामा देवी की कुक्षि में पूर्वरात्री अपररात्रि के बीच ( मध्यरात ) में विशाखा नक्षत्र में चन्द्र योग आने पर दिव्य आहार देव भव दिव्य शरीर त्याग करके ( माता की कुक्षि में ) आवे.
पार्श्वनाथ के पूर्व भवों का वर्णन ।
जंबुर्द्वीप के भरत क्षेत्र में पोतनपुर नामका नगर में अरविंद राजा का विश्व