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(११८) आकर धाप देने लगा, मालिक ने श्राप के भय से घर का दरवाजा बदल दिया था उससे गोगाले को घर मिला नहीं उससे अधिक गुस्सा में पाकर गली में जितने घर थे वे श्राप देकर जला दिये.
प्रभु वहां से विहार कर हरिद्र सनिवेश में आये और हरिद्र वृक्ष के नीचे ध्यान में खड़े रहे. मार्ग में पंथीओं ने अग्नि जलाई आगने बहकर प्रभु का पांच जलाया तो भी प्रभु नहां से हटे नहीं गोशाला अग्नि देखने ही भगा, प्रभु पीछ मंगला गांव में वासुदेव के मंदिर में ध्यान में खड़े रहे वहां पर गोशाला छोटे बच्चों को आंख टेडी करके डराने लगा. वालकों के रोने से मा वापों ने आकर मुनि का रूप देखकर गोशाला को कहा कि यह मुनि पिशाच है ऐसा कहकर छोड दिया प्रभु ने पीछे आवनं गांव में जाकर बलदेव के मंदिर में ध्यान किया वहां पर गौशाला ने मुख टंडा कर बच्चों को डराये, लोगों को गुस्सा आया किन्तु उसको पागल कहकर छोड़ दिया किन्तु उसके गुरु को मारे कि फिर ऐसा दुष्ट शिष्य न रखे ऐसा विचार कर प्रभु को मारने को आये बलदेव की मूर्ति देवाधिष्ठित होकर हाय चोड़ा कर हल से प्रभु को बचाये, प्रम वहां से चौराक सन्निवंश में गये. वहां कोई मंडप में भोजन होता था वो देखने को गोगाला नीचा होकर देखने लगा चौर की भांति से उसको मारा गोशाला ने क्रोधी होकर मंडप को श्राप से जला दिया. ___ पीछे प्रभु कलंचुक नाम के सन्निवेश में गए वहाँ पर मेघ और काल हस्ती दो भाई थे, काल इस्ति अनजान होने से प्रभु को दुःख देना शुरु किया मेघ ने प्रभु को पिछान लिये और प्रभु को छुड़ाये और क्षमा मांगली. प्रभु वहां से अधिक कठिन कर्मों को काटने के लिये लाट देश में गये वहां पर बहुत दुःख पाये, किन्तु प्रभु का चित्त निवल या वहां से अनार्य क्षेत्र में गये रास्ते में दो अनार्य ने अपशुकन की बुदि से मारने को दोड़े इन्द्र ने आकर प्रभु को बचाये और गुस्सा लाकर दोनों के प्राण लिये प्रभु ने भद्रिका मे चोमासा किया (पांचवां चोपासा) वहां से प्रभु विहार कर नगर वहार पारणा कर तंबाल गांव को गये पार्श्वनाथ के नंदिपेण नामक शिष्य सह आकर कायोत्सर्ग में रहे थे उन के साधुओं के साथ भी मोशाला ने पूर्व की तरह अनुचित्त वर्तन किया था भेद इनना ही था कि यहां पर दरोगा (आरक्षक) के पुत्र ने भालों से चोर