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आप मेरे गुरु समान नहीं । जिस से कोई साधुने कहा कि जैसा तूं है ऐसा तेरा गुरु भी होगा । गोशाला ने गुस्सा लाकर कहा कि जहां तुम ठहरे हो वो कुमार का आश्रम जल जाओ वे बोले हमें डर नहीं ऐसा सुनकर चला गया सब बातें प्रभु को सुनाई सिद्धार्थ व्यंतर बोला कि वे साधू हैं साधुओं का आश्रम तेरे श्राप से नहीं जलेगा रात के समय मुनिचन्द्रजी ध्यान मे खड़े थे अंजान में कोई कुंभार ने चोर जानकर उन पर महार किया मरने के समय शुभ भाव से अवधि ज्ञान उत्पन्न हुआ उसकी महिमा करने को देव भाये वो प्रकाश देखकर गोशाला बोला देखो पार्श्वनाथ के साधुओं का आश्रम जलता है. सिद्धार्थ ने सत्य वात कही वो गोशाला को असत्य मालूम होने लगी जिससे वहां जाकर देखने लगा और साधुओं की महिमा देखकर और कुछ नहीं कर सका जिससे तिरस्कार कर पीछा लोटा.
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प्रभु वहां से विहार कर चोरागांव गए रास्ते में राज्य पुरुषों ने प्रभु को गुप्त बात जानने वाला व पर राज्य का दूत समझकर कैद में डालने का विचार किया, इतने में सोमा, जयंती, नामकी दो साध्वीएं जो उत्पल निमित्तिया की वैने थी वे चारित्र संयम में असमर्थ होकर परिव्राजिका ( वावी ) बनी थी उन्होंने सत्य बात कहकर बचाये, प्रभुने पीछे मष्ट चंपा में जाकर चोमासी तप कर चोमासा पूरा किया ( चौथा चौमासा ).
प्रभु पीछे विहार कर कायंगल नामके सनिवेश में गये पीछे श्रावस्ती नगरी में जाकर बहार उद्यान में ध्यान में रहे.
गोशाला का मृत मांस भक्षण
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पितृदत्त नाम का एक वणिक था, उसके बच्चे जन्मते ही मर जाते थे सत्र ज्योतिषी को पूछने पर कहा कि यदि साधू को मृत पुत्र का मांस दूध पाक में मिलाकर खिलाया जावे तो जीता रहने मूर्ख माता ने निर्लज्ज होकर वैसा ही किया सिद्धार्थ व्यंतर से आज मांस खाना पड़ेगा ऐसा जानकर गोशाला और घर छोड़ कर भाग्यवान वणिक के घर को शुद्ध आहार निमित्त आया परन्तु वो ही दूध पाक मिला वो लाकर खाया सिद्धार्थ ने कहा तैने मांस ही खाया गोशाबोला नहीं मैंने दूध पाक खाया, गोशाला ने वमन कर निश्चय करलिया पीला