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जीवन्धरचम्पू
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विषय असली रूपमें प्रकट होना, अन्तमें कुबेरदत्त द्वारा सुरमञ्जरीके साथ जीवन्धरका विवाह होना
दशम लम्भ जीवन्धर कुमारका गन्धोत्कट और सुनन्दासे मिलन, गन्धर्वदत्ता तथा गुणमालासे मिलन, तदनन्तर स्वपक्षको प्रबल करनेके उद्देश्यसे जीवन्धरका अपने मामाके यहाँ विदेह देशमें जाना, मामा गोविन्द राजाके द्वारा इनका सत्कार तथा सम्मान होना, मन्त्रियोंके साथ राजमन्त्रणा, तदुपरान्त गोविन्दराजका काष्ठाङ्गारके प्रेषित पत्रके अनुसार राजपुरी आना, लक्ष्मणा नामक पुत्रीका स्वयंवर रचना, जीवन्धरका विजयी होना, काष्ठाङ्गारका कुपित होकर युद्ध करना, गोविन्द राजा द्वारा काष्ठाङ्गारके कपटका रहस्योद्घाटन करना, अनेक राजाओंका जीवन्धर के पक्षमें आना, जीवन्धर तथा काष्ठाङ्गारका भयंकर युद्ध होना, उसका विस्तृत वर्णन, काष्ठाङ्गारका मारा जाना, विजयी जीवन्धरका रोजमहलमें प्रवेश, काष्ठाङ्गारके परिवारको अभय दान, लक्ष्मणाके साथ जीवन्धरका विवाह
एकादश लम्भ जीवन्धरके राजकौशलका वर्णन, परिवार मिलन, मन्दिर निर्माण, विजया रानीका
दीक्षा लेना, जीवन्धरकी आठों रानियों के पुत्रोत्पत्ति । वसन्तऋतुमें जोवन्धरका सपरिवार वन क्रीडाके लिए जाना, वहाँ वनपाल द्वारा वानरी
के हाथसे तालफलका छीना जाना देखकर जीवन्धरका विरक्त होना, वैराग्य वर्णन, मुनिराजसे धर्मका उपदेश सुनना, अपने पूर्वभव सुनना, अपने पुत्र सत्यन्धरको उपदेश देकर राज्य देना, तदनन्तर दीक्षा लेनेके उद्देश्यसे भगवान्
महावीरस्वामीके समवसरणमें जाना समवसरणका वर्णन, अष्टप्रातिहार्यों का वर्णन, भगवान् महावीरका स्तवन कर दीक्षा धारण करना, कठिन तपश्चर्या करके मोक्ष प्राप्त करना
परिशिष्ट-हिन्दी अनुवाद प्रथम लम्भ
१७०
२१७
द्वितीय , तृतीय , चतुर्थ
२३७ २५४ २६१
२७०
पञ्चम षष्ट
सप्तम
अष्टम नवम दशम " एकादश,
२७६ २८३ २८६ २६५ ३०४ ३०८ ३२६