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जीवन्धरचस्पू
संक्षेपाद् वाक्यमिष्टार्थ-व्यवच्छिन्ना पदावली । काव्यं स्फुरदलकारं गुणवद्दोषवर्जितम् ॥
-अग्निपुराण ३३७।६-७॥ 'शब्दार्थों सहितौ काव्यम्।
-काव्यालंकार १० शब्दाथों सहितौ वक्रकविव्यापारशालिनि । बन्धे व्यवस्थितौ काव्यं तद्विदाह्लादकारिणि ॥ -वक्रोक्ति जीवित १७ निर्दोपं गुणवत्काव्यमलङ्कारैरलंकृतम् । रसान्वितं कविः कुर्वन् कीर्ति प्रीतिं च विन्दति ॥
-सरस्वती कण्ठाभरण १२ 'तददोषौ शब्दार्थों सगुणावनलङ्कृती पुनः क्वापि' -काव्यप्रकाश अदोषौ सगुणौ सालङ्कारौ च शब्दार्थों काव्यम् ।
-काव्यानुशासन प्रथमाध्याय ( हेमचन्द्राचार्यस्य ) गुणालङ्कारसहितौ शब्दार्थों दोषवर्जितौ काव्यम् -प्रतापरुद्रयशोभूपण साधुशब्दार्थसन्दर्भ गुणालङ्कारभूषितम् । स्फुटरीतिरसोपेतं काव्यं कुर्वीत कीर्तये ॥ -वाग्भटालंकार पार शब्दार्थों निदोषौ सगुणौ प्रायः सालङ्कारौ काव्यम् ।
-काव्यानुशासन (द्वितीय वाग्भट्टस्य) निर्दोषा लक्षणवती सरीतिर्गुणभूषिता ।
सालङ्काररसानेकवृत्तिर्वाक्काव्यनामभाक् ॥ -चन्द्रालोक १७ वाक्यं रसात्मकं काव्यम्
-साहित्यदर्पण १३ कायं रसादिमवाक्यं
-अलंकार शेखर ११ शब्दार्थालंकृतीद्धं नवरसकलितं रीतिभावाभिरामं
___ व्यङ्ग्यावर्थ विदोपं गुणगणकलितं नेतृसद्वर्णनाढ्यम् । लोकद्वन्दोपकारि म्फुटमिह तनुतात् काव्यमयं सुखार्थी ।
नानाशास्त्रप्रवीणः कविरतुलमतिः पुण्यधर्मोरुहेतुम् ॥ -अलंकार चिन्तामणि । रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम्
-रसगङ्गाधर । इस छोटेसे प्रकरणमें इन सब विभिन्न मतों की आलोचना अशक्य एवं अनावश्यक है फिर भी इतना कह सकना अपेक्षित है कि सब लक्षण एक ही केन्द्रमें चक्कर लगा रहे हैं। सबसे अन्तिम मत पण्डितराज जगन्नाथ का है कि रमणीय अर्थका प्रतिपादन करनेवाला शब्द समूह काव्य कहलाता है। भले ही अर्थ की रमणीयता अलंकार गुण, रीति, ध्वनि या रस आदि किसी तत्त्वसे प्रस्फुटित हुई है 'चमत्कारपूर्ण उक्ति ही काव्य है' यह काव्यके नाना लक्षणोंका स्वरस है। काव्य हेतु
काव्यका हेतु क्या है ? इस विषयमें भी साहित्य विद्या विशारदोंमें विभिन्न मत पाये जाते हैं फिर भी अधिकांश आचार्योंको मत यही है कि काव्यमें १ शक्ति, २ निपुणता और ३ अभ्यास ये तीन ही कारण हैं । रुद्रटने काव्यालंकारमें शक्तिका लक्षण लिखा है कि
मनसि सदा सुसमाधिनि विस्फुरणमनेकधा निधेयस्य । अक्लिष्टानि पदानि च विभान्ति यस्यामसौ शक्तिः ॥ १।१५