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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ ४.८ सप्तपृ. घनोदध्यादीनां तियग्वाहत्यम् ७१ तिर्यग्वाहल्येन प्राप्त इति भावः । 'धूमपभाए सतिभागाई सत्तजोयणाई पनत्ते' धूममभायाः पत्रिभागानि तृतीयभागेन सहितानि सप्तयोजनानि प्रज्ञप्तः, हे भदन्त ! धृममभायाः पृथिव्याः धनोदधिवलयः कियान तिर्यमाल्येन प्रज्ञप्तः ? हे गौतम ! धूपमभायाः घनोदधिरलयः सत्रिभागानि सप्तयोजनानि प्रज्ञप्त इति भावः । ततप्पभाए तिभाषणाई अठ्ठजोयणाई' तमसाया निभायोनि अष्टयोजनानि, हे भदन्त ! समाप्रमायाः षष्ठ पृथिव्याः घनोदधिवक्रायः कियान तिर्यग्बा. हल्येन प्रज्ञप्तः १ हे गौतम ! तमामभायाः पृथिव्याः घणोदधिवलयः त्रिभागोनानि तृतीय भागहीनानि अष्टयोजनानि तिर्यम्बाहल्येन मज्ञप्त इति । तमतमपभाए अनोषणाई' तमस्तमाप्रभाया अष्टयोजनानि, हे भदन्त ! समस्तम्भमाया पृथिव्याः घनोदधिरलयः किवान तिर्यग्वाहल्येन प्रज्ञप्त: ? गौतम ! तमस्तमा योजन का मोटा कहा गया है 'धूमपाए लति भागाई सत्त जोय. गाई पनन्ते' धूमप्रभा पृथिवी का जो छनोदधि वातवलय है वह तिर्यग्याहत्य की अपेक्षा कितना मोटा कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हे गौतम! धूमप्रभा पृथिवी का जो धनोदधि बलय हैं वह तृतीय भाग सहित खाल थोजन का कहा गया है 'तमप्पाए तिमा. गूणाई अट्ठजोयणाई' हे सदन्त ! छठी तमाममा पृथिवी का जो घनोदधि बलय है वह पियवाहल्य की अपेक्षा शितना मोटा कहा गया है ? उत्तर में प्रभु शहते हैं-हे गौतम । लमःप्रभा पृथिवी का जो घलोदधि वलय है वह योजन झा तृतीय भाग कम आठ योजन को तिर्यग्वाहल्य की अपेक्षा मोटा कहा गया है 'तमतमप्पभाए अयोज. णाई' हे भदन्त ! सातवीं पृथिवी जो तमरतमा प्रक्षा है उसका घनो. दधिवलय तिर्यग्बाहल की अपेक्षा कितना मोटा कहा गया है ? उत्तर में सात यासननी मोटा वाणा हो है. 'धूमपाए सतिभागाइ सत्त जोयणाई पन्नत्ते' धूमला पृथ्वीना २ घनधि पातसय छ, त તિર્યબાહલ્યની અપેક્ષાથી કેટલો વિશાળ કહેલ છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભ ગૌતમ સ્વામીને કહે છે કે હે ગૌતમ ! ત્રીજા ભાગ સહિત સાત જનને हे छे 'तमप्पभाए तिभागूणाई अट्र जोयणाइ' . मगवन् ७28 तमामा પૃથ્વીને જે ઘનેદધિ વલય છે તે તિર્યંબાહથેની અપેક્ષા કેટલે વિશાળ કહેલ છે ? ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે હે ગૌતમ! તમ પ્રભા પ્રત્રીને જે ઘોદધિવલય છે તે જનના ત્રીજા ભાગ કમ આઠ ચીજનને તિર્યબાહલ્યની अपेक्षाथी विस्तार वाणी हुय छे. 'तमतमप्पभाए अजोवणाई है पर સાતમી પૃથ્વી કે જે તમસ્તમા નામની છે, તેને ઘનોદધિવલય તિર્યાહલયની
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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