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________________ प्रमेयद्योतिका टोका प्र.३ सू. सप्तापि पृथिव्य लोकस्पशिन्यो नवैति ५९ मज्ञप्तः-कथितः, शर्करापमा पृयिव्याः पूर्वभागे कियदरे लोकान्तो भवति, इति प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयषा' हे गौतम ! 'तिमागणेहि तेरस जोयणेहि त्रिभागन्यूनैस्त्रयोदशभियोजनैः 'अबाहाए' अबाधया 'लोयंते पन्नत्ते' लोकान्तः प्रज्ञप्त:-कथितः शर्करा प्रभायाः पूर्वदिशि अलोकात्पूर्व त्रिभागोनत्रयो. दशयोजनस्य व्यवधान भवति त्रिभागोनत्रयोदशयोजनान्तरमलोकस्य स्थिति. रित्यर्थः । 'एवं चउद्दिसिपि' एवं पूर्व दिगूभागे यावरकमन्तरं कथितं तावत्कमेवान्तरं दक्षिणदिशि पश्चिदिशि उत्तरदिशि, सर्वासु विदिक्ष्वपि भिमागोन त्रयो. दश योजनस्यैव व्यवधानम् त्रिमागोन त्रयोदशयोजनाद्दुरे अलोकाकाशो भव. तीति भावः । 'वाल्लयप्पभाए .पुढवीए' बालुकाप्रमायाः पृथिव्या: 'पुरस्थि. मिल्लाओ पुच्छा' पौरस्त्यात् पृच्छा, हे भदन्त ! बालुकाममायाः पृथिव्याः पौरस्त्यात् चरमान्तात् किरत्याऽबाधया लोकान्तः प्रज्ञात इति प्रश्न:, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयगा' हे गौतम ! 'सतिभागेहि तेरसहिं जोयणेहि इसके उत्तर प्रभु कहते हैं-'तिभागूणेहि तेरस जोयणेहिं अबाधाए लोयते पण्णत्ते' हे गौतम ! तृतीय भाग कम तेरह योजन की दूरी पर दो भाग सहित बारह योजन की दूरी पर-लोक का अन्त कहा गया है। 'एवं चदिसि वि' शर्कराप्रभा के पूर्व दिग्भाग में जितना यह अन्तर कहा गया है-इतना ही अन्तर शर्कशप्रभा के दक्षिण दिग्भाग में और उत्तर दिग्भाग में तथा विदिशाओं में भी जानना चाहिये 'बालुप्पभाए पुढवीए पुरथिमिल्लाओ पुच्छा' हे भदन्त ! बालुका प्रभा के पूर्व दिग्भावी चरमान्त से कितनी दूर पर लोक का अन्त कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-गोयमा! सतिभागेहिं तेरसहि ६२ सोनामत ४ छ १ मा प्रश्नन। उत्तरमा प्रभु है 'तिभागूणेहि तेरसजोयणेहिं अबाधाए लोय ते पण्णत्ते' 8 गौतम ! त्रीमाथा ४८ तर यौन २ मे माग सहित मा२ या४। २ । मत छे. 'एव' घउदिसि वि' श६२मा पृथ्वीनी शिम रेटयु मा मत२ छु 2. એટલુંજ અંતર શકરપ્રભા પૃથ્વીની દક્ષિણ દિશામાં, પશ્ચિમ દિશામાં અને ઉત્તરદિશામાં તથા વિદિશાઓમાં પણ સમજવું. बालुयप्पभाए पुढवीए पुरिस्थिमिल्लाओ पुच्छा, समपन् पाप्रमाना પૂર્વ દિશામાં આવેલા અરમાન્સથી કેટલે દૂર લેકને અંત કહ્યો છે? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामीन ४ छ है 'गोयमा ! सतिभागेहिं रसहि
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
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