SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 476
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५२ जीवामिगमन उसका यिकानां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'तसकाइया चउबिहा पन्नता' सकायिशाश्चतुविधाश्चतुः प्रकारका प्रज्ञप्ता: -कविता इति । 'तं जहा' तद्यथा:-'वेदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचें दिया द्वीन्द्रि शास्त्रीन्द्रि पाश्चतुरिन्द्रियाः पञ्चेन्द्रिया इति । 'से कि वेइंदिया' अथ के ते द्वीन्द्रियाः द्वीन्द्रिय जीवानां कियन्तो भेदा इति प्रश्नः, भगवानाइ हे गौतम ! 'इंदिया अणेगविहा पन्नत्ता' द्वीन्द्रियजीवा अनेकविधा:-अनेकप्रकारकाः मनप्ताः-कथिता इति । 'एव चेव पण्णवणापदे तं चेव निरवसेसं भणियन्वं जाव सबसिद्धपदेवा' एवमेव प्रज्ञापना प्रथमे पदे कथितं तथैव निरवशेष- समग्रमपि भणितव्यं वक्तव्यम् यावत् सर्वार्थसिद्धदेवाः, द्वीन्द्रियादारभ्य सर्वार्थसिद्धदेव पर्यन्तानां होपभेदयुक्तानां प्रज्ञापनाप्रकरणवदेव ज्ञातव्यमिति । 'सेत्तं अणु त्तरोववाइया' ते एते अनुत्तरोपपातिका देवा निरूपिताः । ‘से तं देवा' ते एते 'से किं तं तसफाइया' हे अदन्त त्रसकायिक जीवों के कितने भेद हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-हे गौतम! 'तसशाच्या चउब्धिहा पण्णत्ता' प्रसकायिक जीव चार प्रकार के हैं-'तं जहा' जैसे-'वेइंदिया, तेइंदिया, चरिदिया, पंचे दिया' दोइन्द्रिय तेन्द्रिय, चौइन्द्रिय, और पञ्चेन्द्रिय 'से कितं वेइंदिया' हे भदन्त ! दो इन्द्रिय जीवों के कितने भेद हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-हे गौतम ! 'वेइंदिया अणेगविहा पण्णत्ता' दो इन्द्रिय जीवों के अनेक भेद हैं एवं चेव पण्णणा पदे तं चेव निरवसेस भाणियव्वं जाव सव्वट्ठसिद्धगदेवा' इन सब का वर्णन प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में किया गया है अतः यह सब वर्णन द्वीन्द्रिय जीवों के वर्णन से लेकर सर्वार्थ सिद्ध के देवों के वर्णन तक का यहां पर प्रज्ञापना से लेकर कर लेना चाहिये वहां इनका वर्णन भेद प्रभेदों तसकाइया' ७ सय सय ७वाना ४८सा हो वा छे. मा प्रश्नना उत्तरमा प्रमुश्रीगीतमस्वामीन है 'गोयमा । तसकाइया चउबिहा पण्णत्ता' गीतम! साथि । य२ रना ह्या छे. त जहा' रेभ 'बेइंहिया, तेइंदिया, चउरिदिया, पचे दिया' में दिया। वा, त्रय धाद्रिय વાળા જી, ચાર ઈદ્રિય વાળા છે અને પાંચ ઈ દ્રિય વાળા છે 'से कि त वेइदिया' गवन् मेद्रिय वा वाना सा हो ४ा छ १ मा प्रश्रना उत्तरमा असुश्री गोतमत्वामीन 'गोयमा ! वे इंदिया अणेगविहा पण्णत्ता' हे गीतम! मे द्रियवाणा ! मने प्रश्न वा छे. एवं चेव पण्णवणा पदे त चेव निरवसेस भाणियब जाव सम्बद्व सिद्धगदेवा' આ બધા જીનું વર્ણન પ્રજ્ઞાપના સૂત્રમાંથી લઈને કહી લેવું જોઈએ. ત્યાં તેઓનું વર્ણન ભેદ પ્રભેદે સહિત ઘણાજ વિસ્તાર પૂર્વક કરવામાં આવેલ છે.
SR No.010389
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages929
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size61 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy