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प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ उ.३ १.२६ पक्षीणां लेश्यादिनिरूपणम् ४१७ चतुष्पद स्थलचरजीवानां कृष्णनीलादिकाः पडवि लेश्या भवन्ति दृष्टयादि द्वाराणि पक्षिवदेव चतुष्पदस्थलचरजीवानामपि ज्ञातव्यानीति । खेचरापेक्षया चतुष्पदस्थलचराणां यद्वैलक्षण्यं तत् स्वयमेव दर्शयति-जाण तं' इत्यादि, 'णाणत्तं' नानात्वं भेदः, इयम्-'ठिई जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं लिचि पलिओवमाई चतुष्पदस्थलचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां स्थितिर्जघन्येनान्तर्मुहूर्त उत्कर्षण त्रीणि पल्योपमानि । 'उचट्टित्ता चउत्थि पुढवि गच्छंबि' इमे चतुष्पदस्थल चरजीवाः उदृत्य चतुर्थी पङ्कमभापृथिवी पर्यन्त गच्छन्तीति ततः परतरपृथिव्यां तेषां गमनाभावादिति ॥ 'दसजाइकुलकोडी' दसजातिकुलकोटियोनि प्रमुख शतसह.
' हे गौतम ! चतुष्पदथलचर जीवों के कृष्ण वेश्याएं होती हैं। दृष्टि आदि द्वारों सम्बन्धी कथन यहां पक्षि प्रसरण के जैले ही समझना चाहिये पर खेचरों की अपेक्षा जो चतुष्पदस्थ लचर के स्थिति उत्तमा
और योनिसंग्रह इन द्वारों में भिन्नता है-वह इस प्रकार है-'जाणतं' इस सूत्र द्वारा यही बात समझाई जा रही है-ठिई जहन्ने णं अंतोसुकृतं उक्कोसेणं तिमि पलिओवमाई' यहां स्थिति जघन्य ले एक अन्तर्मुहूर्त की है और उस्कृष्ट से तीन पल्योपम की है ये 'उध्वट्टित्ता चउत्थी पुढची गच्छंति' मरकर नीचे को सीधे चतुर्थ धूमप्रभा पृथिवी तक जाले है भागे पथिषियों में नहीं जाते हैं। क्योंकि वहाँ तक जाने के लिये इनमें गमन शक्ति का अभाव है। 'दसजाती कुल कोडी' इनके कुल बहोडी ગૌતમ! ચતુષ્પદ સ્થલચર અને કૃષ્ણલેશ્યા હોય છે અહિયાં દષ્ટિદ્વાર - વિગેરે દ્વારેનું કથન પક્ષિઓના પ્રકરણના કથન પ્રમાણે જ સમજી લેવું પરંતુ ખેચરની અપેક્ષાએ ચતુષ્પદ સ્થલચરોનું સ્થિતિદ્વાર અને ઉદ્વર્તના દ્વારના ४थनमा डेरा छे. ते पाणु मा प्रभाव सभा ‘णाणत्त' से सूत्र द्वारा मे पातनु ४थन ४२८ छे. 'ठिई जहण्णेण अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण तिन्नि पलिओवमाई' माहियां तमान स्थिति न्यथी ४ मत इतनी ४६. भने उत्कृष्टया व पक्ष्या५मना छे. तया 'उव्वट्टित्ता चलस्थि पुढवीं गच्छति' भशन सीधा नाय याथी धूमप्रमा पृथ्वी सुधा तय है. તેનાથી આગળની પૃથ્વીમાં જઈ શકતા નથી. કેમકે ત્યાંથી આગળ જવા માટે तेसामा गमनतिन मला छे. 'दस जाती कुलकोडी' तमानी सीटी
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