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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.२ ५.१४ नरकावासानां वर्णादिनिरूपणम् १९१ गौतम ! ‘से जहा नामए' स यथानामकः 'अहिमडेवा' अधिमृत इति वा अहिमृतः मृतसर्पशरीर इत्यर्थः मृतात् सर्पशरीराद याशो गन्धः प्रादुर्भति तागो गन्धो नरकाणामिति, एवं सर्वत्रापि योजनीयम् । 'गोमडेइ वा' गोमृत इति वा, 'सुगगमडे ग' शुभकमृत इति बा, 'मज्जारमडेइ वा' मानारपृत इति वा 'मणुस्स मडेइना' मनुष्यमृत इति वा 'महिसम डेइ ।' महिषमृत इति वा 'मृसगमडेइ वा' मूषकमृतइति वा 'याममडेइ का' अश्वमृत इति वा 'हथिम डेइ वा हस्ति मृतइति बा, सीहमडे का' सिंहमृत इति वा, 'ग्यम डेहवा याघ्रमृत इति वा, 'विगमडेइ वा वृस्मृत इति वा, 'दीविय मडेइ बा' द्वीपस्मृत इति वा, द्वीपकश्चित्रका सर्वत्र अहिश्चासौ मृतश्चेत्यहि मृत इति रूपेण विशेषण समासः । इह सधोमृतं शरीरं न दुर्गन्धि भवति तबाह-'मय कुहियचिरविण? कहते हैं-'गोयमा! से जहानामए अहिडेह हा गोमडे वा सुणामडेह छा' हे गौतम ! जैसा सर्प का मृतकलेवर होता है, गाय का मृतकलेचर होता है, कुत्ते का मन कलेवर होता है, 'मज्जारमडेइ वा बिल्ली का मृतकलेवर होता है, 'मणुसलमडेइ वा मनुष्य का मृतशलेवर होता है, 'महिलमडे वा' असे का मनकलेवर होता है, 'मुसगमडेइ वा मूषक का मृतकलेवर होता है । 'आलमडेह वा घोडे का मृतकलेचर होता है। हथिडेह वो हाथी का मृतकलेसर होता है, 'सीहाइवा सिंह का मृतकलेवर होता है, 'वग्घमडेइ वा व्याघ्र का मृतकलेवर होता है, 'विगमडेइ वा वृक का मृतकलेवर होता है। 'दीषियमडे वा' चित्ता का मृनकलेव होता है और ये सब मृतकलेवर 'भयकुहिध चिरचिट्ठगौतम स्वामी ने छ, 'गोयमा ! से जहानामए अहिमडेइ वा गोमडेइ वा सुणगमडेइवा' हे गीतम! भरेसा साप २ प्रमाणे सेवन शरीर हाय छ, મરેલી ગાયનું જેનું કલેવર શરીર હોય છે, મરેલા કૂતરાનું શરીર જેવું હોય છે, 'मज्जारमडेइवा' भरेती मीनु २ प्रभायेनु शरी२ छ।य 'मणुम्स मडेइवा' भरेता मनुष्यनुरे प्रभानु शरीर हाय छ, 'महिसमडेवा' भरेकी सनु रेवु शरीर डाय छे 'मुसगमडेइ वा' भरेता मनु शरी२ २ य छे. 'आसमडेइ वा' भरेता क शरीर केय छ, 'हत्थिमडेइ वा' मरे हाथीनु २ शरीर हाय छ, 'सीह मडेइवा' भरे सिंह ने शरी२ डाय छे. 'वघडेडवा' भव। पाचन २९. शरीर डाय छ, 'दिगमडेवा' ५ मा १३नु रेवु शरी२ सय छे, 'दीवियमडेइवा' भरेता दीपानुरे शरीर