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जीवाभिगमसूत्रे त्कालपर्यन्तम् 'ठिई पन्नत्ता' स्थितिः-आयुष्यकालरूपा प्रज्ञप्ता-कथिता इति प्रश्नः, 'भगवानाह--'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम । 'एगेणं आदेसेणं जहा पुचि भणियं' एकेनादेशेन यथा पूर्व भणितम् । स्त्रीणा स्थितिः कियत्कालं भवतीति, स्त्रीप्रकरणे एव कथिता अतस्तत एव इहापि विज्ञेया । ननु यदि पूर्वमेव कथिता तदाऽत्र पुनःसूत्रोच्चारणे पुनरुक्ति. कथं नेति चेन्न, पूर्व स्त्र्यादीनामधिकारे पृथक्पृथग्रूपेण स्वस्वाधिकारे स्थित्यादिकं प्रतिपादितमिह तु समुदायरूपेण प्रतिपादनात् । ‘एवं पुरिसस्स वि णपुंसगस्स वि' एव पुरुषस्यापि नपुंसकस्यापि यथा स्त्रीणां स्थितिः स्त्रीप्रकरणे कथिता तथा पुरुषनपुंसकयोरपि स्थिति तत्तत्प्रकरणे कथिता ततो ज्ञातव्येति । 'संचिट्ठणा पुणरवि' कायस्थितिः पुनरपि 'तिण्हंपि' त्रयाणा स्त्रीपुरुषनपुंसकानामपि 'जहा पुचि भणिया' यथा-येन प्रकारेण पूर्वम् स्त्र्यादितत्तत्प्र
__टीकार्थ---इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है- "इत्थी ण भंते ! केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता" हे भदन्त ! स्त्रियो की आयु कितने काल की कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते है -'गोयमा ! एगेणं आदेसेणं जहा पुचि भणियं" हे गौतम ! एक आदेश से जिस प्रकार से पहिले-स्त्री प्रकरण में स्थिति कही गई है । यहाँ पर भी वही स्थिति कहलेनी चाहिये । यदि स्त्री प्रकरण में यह बात कह दी गई है तो फिर से यहाँ इसे सूत्र रूप से उद्गावित करने में पुनरुक्ति दोषकी आपत्ति क्यो नहीं मानी जावेगी ? सो ऐसी आशङ्का ठीक नहीं है, क्योकि स्त्रीप्रकरण में तो स्त्र्यादिकोकी पृथक २ रूप से स्थिति आदिका प्रतिपादन किया गया है. परन्तु यहां समुदायरूप से स्थिति आदि का प्रतिपादन हुआ है अतः पुनरुक्ति दोष की आपत्ति नहीं आती है. इसी प्रकारसे एवं "पुरिसस्स विणपुंसगस्स वि" पुरुष और नपुंसककी भी स्थिति उन २ के पहिले कहे गये प्रकरण से जान लेनी चाहिये "संचिट्ठणा" कायस्थिति भी इन तीनो की स्त्री-पुरुष और नपुंसक की-"जहा पुच्चि भणिया" जैसी कायस्थिति पहिले उन उनके प्रकरण में कह दी गईहै वैसी ही यहाँ पर भी कह लेनी चाहिए, “अंतरंपि" स्त्री, पुरुष और
टा -सा सूत्र द्वारा गौतमस्वामी प्रसुन मे पूछ्यु छ ?--"इत्थी ण भंते ! केवइय काल ठिई पन्नता" भगवन् स्त्रियानु मायुष्य लातु यु छ १ मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभु गौतम स्वामीन ४ छ-"गोयमा! एगेणं आदेखणं जहा पुचिं भणियं" है ગૌતમ ! એક આદેશથી જે પ્રમાણે પહેલાં સ્ત્રી પ્રકરણમાં સ્થિતિનું કથન કર્યું છે. એજ પ્રમાણેની સ્થિતિનું કથન અહિયાં પણ સમજવું
શંકા– જે સ્ત્રી પ્રકરણમાં આ વાત કહેવામાં આવી ગઈ છે, તે પછી અહિયા સૂત્રરૂપે કહેવામાં પુનરૂક્તિ દોષ કેમ નહી મનાય ?
ઉત્તર–આ પ્રમાણેની શ કા કરવી ઠીક નથી કેમ કે–સ્ત્રી પ્રકરણમાં તે સ્ત્રી વિગેરેની જુદી જુદી સ્થિતિ વિગેરેનું કથન કરવામાં આવેલ છે. પરંતુ અહિયા સમુદાયરૂપથી સ્થિતિ विगैरे प्रतिपाइन थयु छ तथा युनत होनापत्तिना समय नथी "एव पुरिसस्स वि णपुंसगस्स वि" Y३५ मन नपुंसानी स्थिति ५ तना तना समधमा पडतांडवामा मावेस ५४२ माथी सम सेवी 'संचिट्ठणा' मात्रणेनी आयस्थिति ५५ मेट सी, ५३५ मने नधुसोनी स्थिति "जहा पुव्विं भणिया" रे प्रमाणे ते ते ५४२मा पाडला