SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवाभिगमसूत्रे संखेज्जगुणा' अन्तरद्वीपकमनुप्यपुरुपापेक्षया देवकुरूत्तरकुर्व कर्मभूमिकमनुष्यपुरुपा सख्येयगुणा अधिका भवन्ति तथा यानां परस्परं सख्येयगुणत्वेन तुल्यता च भवति क्षेत्रस्य बहुत्वेन समानत्वात्, 'हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्स पुरिसा दो बितुल्ला संखेज्जगुणा' तदपेक्षया हरिवर्ष रम्यकवर्षाकर्मभृमिकमनुष्यपुरुषा द्वयेऽपि तुल्याः संख्येयगुणा. क्षेत्रस्याति बहुत्वात्, 'हेमवयएरण्णवयवासअक्रम्म भूमिगमणुस्स पुरिसा दो चितुल्ला संखेज्जगुणा' हरिवर्षरम्यकवर्षमनुष्यापेक्षया, 'हमवतैरण्यत्रनवर्षा कर्मभूमिकमनुष्यपुरुषा सस्येयगुणा अधिकाः क्षेत्रस्य अल्पत्वेऽपि अल्पस्थितिकत्वेन प्राचुर्येण लभ्यमानत्वात् । तथापतेपा यानां क्षेत्रस्य समानत्वात् परस्परं तुल्यता च । ५१६ क्षेत्र छोटा होता है । 'देवकुरूत्तरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्तपुरिसा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा' अन्तरद्वीपके मनुष्य पुरुषो की अपेक्षा देवकुरु और उत्तर कुरु इन दोनो क्षेत्रों के मनुष्य पुरुष दोनो क्षेत्रों की समानता से परस्पर समान होते हुए सख्यात गुणे अधिक होते है, क्योंकि अन्तरद्वीप की अपेक्षा ये दोनो क्षेत्र बड़े हैं । ' हरिवासरम्मगवासअकम्मभूमिगमणुस्स पुरिसा दो वि तुला संखेज्जगुणा' देवकुरु उत्तर कुम के मनुष्य पुरुपोकी अपेक्षा हरिवर्ष रम्यक वर्ष इन दोनों अकर्म भूमि के मनुष्य पुरुष परस्पर समान होते हुए संख्यातगुणे अधिक होते हैं, क्योंकि देवकुरु उत्तर कुरु क्षेत्र की अपेक्षा ये दोनों क्षेत्र अधिक विस्तृत है, 'हेमवय हेरण्णवयवास अकम्म भूमिगमणुस्तपुरिसा दो वितुल्ला संखेज्जगुणा' हरिवर्ष रम्यकवर्ष क्षेत्र के मनुष्य पुरुषों की अपेक्षा ये हैमवत हैरण्यवत वर्ष इन दोनों क्षेत्र के मनुष्य पुरुष परस्पर सख्यामे समान होते हुए संख्यात गुणे अधिक होते है, इन क्षेत्रो के छोटे होते हुए भी यह । यहा के मनुष्य पुरुष अल्पस्थिति वाले होने से - छे, मडे-मील क्षेत्र उरता आ अंतरद्वीप क्षेत्र नातु होय हे "देव कुरुतरकुरुअकम्मभूमिगमणुस्स पुरिसा दो वि तुल्ला सखेज्जगुणा' तग्द्वीयना मनुष्य पुरुष ४२ता देव३ અને ઉત્તરકુરુ આ બન્ને ક્ષેત્રાના મનુષ્ય પુરુષા બન્ને ક્ષેત્રોના સમાન પણાને લઇને પરસ્પર બન્ને સરખા હાય છે, અને સખ્યાત ગણા વધારે હોય છે કેમકે~અંતરદ્વીપ કરતાં આ जन्ने क्षेत्रो भोटा होय छे. "हरिवासरम्मगवास अकस्मभूमिगमणुस्सपुरिसा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा' देवड्डरु भने उत्तरगुरुना मनुष्य पुरुषो उरता परिवर्ष भने रम्य वर्ष આ બેઉ અકમ ભૂમિના મનુષ્ય પુરુષ પરસ્પર સમાન હોય છે, અને સ ખ્યાત ગણા વધારે होय छे. प्रेम - देवरु उत्तर क्षेत्र २ मा मे क्षेत्र वधारे विस्तार वाजा छे "हेमवय हेरण्णवयवास अकम्मभूमिगमणुस्स पुरिसा दो वि तुल्ला संखेज्जगुणा " विर्ष भने रभ्य वर्ष ક્ષેત્રના મનુષ્ય પુરુષા કરતાં આ હૈમવત અને હેરણ્યવત વર્ષે બન્ને ક્ષેત્રના મનુષ્ય પુરુષ અન્ય અન્ય સખ્યામાં સરખા છે અને સંખ્યાતગણા વધારે છે. આ ક્ષેત્રો નાના હાવા છતાં પણ ત્યાના મનુષ્ય પુરુષ અલ્પ સ્થિતિ વાળા ડાવાથી મનુષ્ય પુરુષ વધારે પ્રમાણમાં મળે છે. “મર આ
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy