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________________ ४५४ ftarfare कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालं बन्धस्थितिः प्रज्ञप्ता कथितेति प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा ' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम | 'जहन्नेणं सागरोवमस्स दिवइढो सत्तभागो पलिश्रवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणो' जघन्येन सागरोपमस्य द्वयः सप्तभागः द्वितीयः अत्र सद्र्यर्द्ध' अर्धेन सह एकः (१||) एतादृशः सप्तभाग इत्यर्थः, स च पल्योपमस्या संख्येयभागेनोनो हीनः, कथमित्याह - इह स्त्रीवेदादीनां कर्मणां स्वस्य स्वस्य उत्कृष्टस्थितिबन्धस्य मिध्यात्वसत्कया उत्कृष्टया स्थित्या सप्ततिसागरोपमकोटीकोटीप्रमाणया भागे हृते यल्लभ्यते तत्पल्योपमासंख्येयभागन्यून जघन्यस्थिति' प्रतिभातति । एव सर्वेषां ज्ञानावरणीयादि कर्मणां जघन्यबन्धस्थितिः परिभावनाया, तथाहि अत्रेय करणगाथा - 'कोसठिणं, मिच्छत्तु क्कोंसगेण जं लद्धं । सेसाणं तु जहणं, पलियासंखेज्जगेणूणं' ॥१॥ काल वैधठिई पण्णत्ता' हे भदन्त ! स्त्री वेद कर्म की बन्धस्थिति कितने काट तक की है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं । " गोयमा ! जहन्नेणं सागरोवमस्स दिवइढो सत्तभागो पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणो' हे गौतम । जघन्य से स्त्रो वेद कर्मकी बन्धस्थिति तो पल्यो - प्रमाण है यहां १॥ पम के असंख्यातवे भाग से हीन सागरोपम के डेढ़ सातिया भाग ७ जो पल्योपम के असंख्यातवें भाग से हीन सागरोपम के डेढ़ सातिया भाग प्रमाण कहा गया है-उसका कारण ऐसा है कि स्त्रो वेद आदि कर्मों का जो अपनी २ उत्कृष्ट स्थिति बन्ध है उसको मिध्यात्व कर्म की जो सत्तर ७० कोडाकोदी सागरोपम की स्थिति है उससे भाग देने पर जो बचता हैं वह पल्योपमके असंख्यातर्वे भाग से न्यून जघन्यस्थिति का प्रमाण भाता है. इसी प्रकार ज्ञानावरणीयादि सब कर्मों की जघन्य वन्वस्थिति की भावना करनी चाहिए जैसे -यहा इसके विषय में एक करण गाथा कहीं गई है - वग्गुकोसठिईणं इत्यादि । अर्थात् aari काल वंधठिई पण्णत्ता" से लगवन् स्त्रीवेह उनी मधस्थिति डेटला क्षण सुधीनी अही है ? या प्रश्नमा उत्तरमां प्रभु गौतमस्वाभी ने हे छे - "गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स विड्ढो सत्तभागो पलियोवमस्स असंखेज्जइ भागेण ऊणो” – हे गौतम । ध ન્યથી સ્ત્રીવેદ કર્મ ના બધ સ્થિતિ તે પળ્યેાપમના અસંખ્યાતમા ભાગથી હીન સાગરાપમના દોઢ સાતિયાભાગ પ્રમાણ છે અહિયાં જે પધ્યેામના અસખ્યાતમાં ભાગથી ૧૫ ७ હીન સાગરોપમ ના દોઢ સાતિયાભાગ પ્રમાણુ કહેલ છે, તેનું કારણ એવુ છે કે—સ્રીવેદ વિગેરે કર્માના જે પોતપોતાના ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિબધ છે તેને મિથ્યાત્વ કમની જે સિત્તેર ૭૦ કાડા કોડી સાગરોપમની સ્થિતિ છે, તેનાથી ભાગવાથી એ શેષ રહે તે પચૈામ ના અસખ્યાતમા ભાગથી ન્યૂન જઘન્ય સ્થિતિનું પ્રમાણ છે એજ પ્રમાણે જ્ઞાનાવરણીય વિગેરે સઘળા કર્મોની જઘન્ય અન્યસ્થિતિની ભાવના કરીલેવી જોઈએ જેમકે અહિયાં તેના संणधभा मे ४२] गाथा उडेवामां भावी छे - " वग्गुक्को सठिणं" त्याहि अर्थात् ने ने
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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