________________
-
श्रीजीवाभिगमसूत्रम् स्तम् । नीरूजपथ्यान्नवत् एतादृशजिनमतम् जिनप्रवचनम् 'अणुव्वीइय' अनुविचिन्त्य औत्पत्तिकीपारिणामिक्यादिवुद्धचा विचिन्त्य--पर्यालोच्य 'तं' तत् जिनमतम् 'सदहमाणा' श्रदधानाः-जिनमते श्रद्वां कुर्वन्तः । यद्यपि कालवैपम्यात् मेधादिगुणहीनाः प्राणिनः तथापि स्वल्पमपि अधिगतं माषपरिमितचिन्तामणिवत् कल्पवृक्षाड्कुरवद्वा अनिष्टं विनाश्य स्वर्गापवर्गसुखप्राप्तये भवतीत्याईचित्ततया मन्यमाना इति भावः । तथा-'त' तत् जिनमतमेव 'पत्तियमाणा' प्रीयमाणाः असङ्गप्रीत्या विश्वास कुर्वाणाः अथवा परमप्रीति जिनवचने कुर्वाणाः परमानुरागतया पश्यन्तः पथ्यौपधिवत् । तथा 'तं' तत् जिनमतमेव 'रोयमाणा' रोचयन्तः अमृतमिव स्वात्मरूपेणानुभवन्तः, पद दिया गया है। यह शास्त्र जो गोत्र विशुद्ध उपाय में अभिमुख एवं अनर्थों से विमुख हुए आदि जिनों के-जम्बूस्वामी आदि जिनों के लिये यथाविधि सेवित किये जाने पर हितावह है। जैसा-नीरोग को-पथ्याहार भविष्य में आने वाले रोगो को रोकने वाला होने से हितावह होता है, ऐसा जो यह जिनमतरूप जिनप्रवचन हैं उसका 'अणुव्वीइय' औत्पत्तिकी पारिणामिकी आदि बुद्धि द्वारा परिशीलन करके 'तं सदहमाणा' उसे अपनी श्रद्धा का विषय बना करके-यह समझ करके कि यद्यपि काल की विषमता से प्राणी मेधादिगुणों से हीन हो गये है परन्तु फिर भी उनके द्वारा अधिगत हुमा थोड़ा सा भी यह प्रवचन भाषापरिमित चिन्तामणि के जैसा अथवा कल्पवृक्ष के अंकुर के जैसा अनिष्ट का विनाश कर उन्हें स्वर्ग एवं अपवर्ग के सुख की प्राप्ति के लिये होता है ऐसा विशुद्धभावरूप रस से आर्द्र (गोले) हुए चित्त से स्वीकार करके तथा-'तं पत्तियमाणा' उसे पूर्णरूप से विश्वास में लेकर के अथवा जिनप्रवचन पर पथ्योपधि के जैसा परम अनुराग रखकरके 'तं रोयमाणा' अमृत के जैसा उसे अपनी रग रग में परिणमा करके 'थेरा भगवंतो' धर्मपरिणति से
"जिणप्पसत्य" पहनी प्रयोग ४२॥ये छ रेया गोत्रविशुद्ध पाय (मात्महितनो भाग) આચરી રહ્યા છે અને અનર્થોથી દૂર રહેવા પ્રયત્ન કરે છે એવા જ બૂસ્વામી આદિ જિને દ્વારા વિધિ અનુસાર જેનું સેવન કરવામાં આવેલું હતું અને જેના સેવન દ્વારા તેમનું હિતા સધાયું હતું એવું આ શાસ્ત્ર પચ્યાહારની જેમ ભવિષ્યના દુઃખથી રક્ષા કરનારું હોવાથી हितावह छ मेरे मारिनमत ३५ अवयन छ तनु “अणुच्चीइ य" मीत्पत्तिडी पारिमिती माविमुद्धिा परिशीलन शन "तं सहहमाणा" तेना प्रत्ये श्रद्धा રાખીને-એવું સમજીને કે કાળની વિષમતાને લીધે માણસે મેધા (બુદ્ધિ) આદિ ગુણોથી રહિત થઈ ગયા છે, છતાં પણ જે તેમના દ્વારા આ પ્રવચનને ઘેડ સરખો અશ પણ ગ્રહણ કરવામાં આવે, તે અડદના દાણા જેવડા ચિન્તામણિની જેમ અથવા કલ્પવૃક્ષના અંકુરની જેમઅનિષ્ટને વિનાશ કરીને તેમને સ્વર્ગ અને મેક્ષની પ્રાપ્તિ કરાવે છે. એવા विशुद्ध साव३५ २सथी माद्र येता वित्त व स्त्री०२ ४शन तथा तना प्रत्ये "पत्तिय. माणा" पू ३२ विश्वास रामीन अथवा नवयन प्रत्ये ५थ्य मौषधिना २३ ५२म