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________________ प्रमेयधोप्रतिका टीका प्रति० २ त्रिविधप्रतिपत्तिनिरूपम् ३६९ प्रज्ञापनापदे द्रष्टव्याः, तेषां स्त्रियः अन्तरद्वीपिकाः अन्तरद्वीपजमनुष्यस्त्रियोऽष्टाविंशति,विधा विज्ञेया इति । 'से तं अंतरदीवियाओ' ता एता एकोरुकद्वीपिकायाः स्त्रियोऽन्तरद्वीपजा निरूपिता इति । अन्तरद्वीपिकाः स्त्राः निरूप्याकर्मभूमिकाः निरूपयितुं प्रश्नयन् आह---'से किं तं' इत्यादि. 'से कि त अकम्मभूमियाओ' अथ कास्ता. अकर्मभूमिकाः, अकर्मभूमिक स्त्रीणां कियन्तो मेदा इति प्रश्न , उत्तरयति-'अकर्मभूमिया तीसदिहाओ पन्नत्ताओ' अकर्मभूमेका स्त्रिंशद्विधाः-त्रिंशत्प्रकारकाः प्रज्ञप्ता इति । त्रिशद्भेदमेव दर्शयति तं जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा - 'पंचसु हेमवएस' पञ्चसु हेमवतेषु 'पंचसु एरण्ण वएसु' पञ्चसु ऐरण्य. वतेषु 'पंचसु हरिवासेसु' पञ्चसु हरिवर्षेषु 'पंचसु रम्मगवासे सु' पञ्चसु रम्यकवर्षेषु 'पंचसु देवकुरासु' पञ्चसु देवकुरुषु पंचसु उत्तरकुरासु पञ्चसु उत्तरकुररुषु, एतेषु हैमतवादिषु त्रिंशत्सु अकर्मभूमिवर्षेषु समुत्पन्नानामकर्मभूमिजानां मनुष्याणा स्त्रियोऽकर्मभूमिका स्त्रिंशद्विधा भवन्तीति भावः । 'सेत्तं अकम्मभूमियाओ' ता एता स्त्रिंशद् अकर्मभूमिका. स्त्रियः निरूयहाँ यावत्पद से प्रज्ञापना सूत्र में कथित समस्त अन्तरद्वीपज स्त्रियों का संग्रह हुआ है । अतः वह पाठ वहीं से देखलेना चाहिये "से तं अंतरदीवियाओ" इस प्रकार से निरूपित ये एकोरूक नामक द्वीप आदिकी स्त्रियां अन्तरद्वीपज स्त्रियां हैं। ‘से कि त अकम्मभूमियाओ" हे भदन्त ! अकर्मभूमिजस्त्रियो के कितने भेद होते है । गोयमा ! "अकम्मभूमियाओ तीसविहाओ पन्नत्ताओ" हे गौतम ! अकर्मभूमिज स्त्रियो के तीस भेद होते है। "तं जहा" जैसे'पंचम हेमवएसु" पांच हैमवत क्षेत्रोमे उत्पन्न हुई "पंचसु एरण्णवएसु' पांच ऐरण्यवत क्षेत्रों में उत्पन्न हुई, 'पंचसु हरिवासेसु' पाँच हरिवर्ष क्षेत्रो में उत्पन्न हुई 'पंचरम्मगवासेसु' पांच रम्यक वर्ष क्षेत्र में, उत्पन्न हुई 'पंचदेवकुरासु" पांच देव कुरुओं में उत्पन्न हुई, "पंचसु उत्तरकुराम" एवं पोच उत्तर कुरुओं में उत्पन्न हुई इस प्रकार से ये 'अकस्मभूमियाओ" तीस अकर्म भूमिजस्त्रियां हैं । “से कि त कम्मभूमियाओ" हे भदन्त ! कर्मभूमिज स्त्रियां ત્પદથી પ્રજ્ઞાપના સૂત્રમાં કહેલ અંતરદ્વીપની સઘળો સ્ત્રિને સંગ્રહ થયેલ છે. તેથી તે पाठ त्यांथी न समझ a. "से तं अंतरदीवियाओं" २ प्रमाणे । मे।३४ नामना दीपनी स्त्रियो, अने २५ तरद्वी५ स्त्रियातु नि३५९४ ४२ छ “से कि त अकम्मभूमियाओ' भगवन् मभूमि नियोनाटा हो ॥ छ १ "गोयमा ! अकम्मभूमिया तीसविहाओ पण्णत्ताओ" गौतम ! म भूमिका स्त्रियांना त्रीस लेहो पा छ. 'तं जहा" a त्रीस मेह! मा प्रभारी छ --'पंचसु हेमवपसु" पांय भवत क्षेत्रीमा उत्पन्न थयेटी स्त्रिया, "पंचसु एरण्णवएसु' पांय २९यक्त क्षेत्रमा 64न्न थयेसी सिया "पंचसु हरिवासेसु" पांय हरिष क्षेत्रमा उत्पन्न थये. स्त्रिया, "पंच रम्मगवासेसु" पांय २भ्य क्षेत्रमा उत्पन्न थयेसी लिया, "पंच देवकुरासु" पाय वशम्मामा उत्पन्न थयेसी स्त्रियो "पंचसु उत्तरकुरासु" तथा पांय उत्तर शोभा S4-1 ये स्त्रिया मा ४७
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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