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प्रमेयधोतिका टीका प्रति०१
स्थावरभावत्रसभावस्य भवस्थितिकालमानम् ३४९
तेति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं अंतोमुहत्त' । जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् 'उक्कोसेण वावीसं वाससहस्साई ठिई पन्नत्ता' उत्कण द्वाविंशति वर्ष सहस्राणि स्थितिः प्रज्ञप्ता कथिता, स्थितेविंशतिवर्ष सहस्रकथनं तु पृथिवीकायिकमधिकृत्य ज्ञातव्यम्, अप्कायिकादेः स्थावरकायस्योत्कर्पत. एतावत्या भवस्थितेरभावादिति ॥ 'तसस्स णं मंते' त्रसस्य खलु भदन्त ! सस्य-वसनामकर्मोदययुक्तस्य जीवस्य खल भदन्त ! 'केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' कियन्तं कालं स्थितिः-भवस्थितिः प्रज्ञप्ता-कथितेति प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' ! हे गौतम ! 'जहन्नेण अंतोमुहुत्तं' जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् , 'उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता' उत्कर्षण त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता-कथिता, एतच्च स्थितिकालकथनं देवनारकापेक्षया ज्ञातव्यम् , अन्यस्य त्रसकाय
पादन करने के लिये सूत्रकार कहते है-'थावरस्स णं भंते' इत्यादि ।
थावरस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता० इत्यादि ।।२० २८||
टीकार्थ-गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है-"थावरस्त णं" भंते !, स्थावर" नाम कर्म के उदयवाले स्थावर जीव की "केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता" कितने काल की स्थिति कही गई है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं "गोयमा" हे गौतम ! "जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं" स्थावर जीव की स्थिति जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त को और "उक्कोसेणं' उत्कृष्ट से "वावीसं वाससहस्साई" बाइस हजार वर्ष की कही गई है, यह उत्कृष्ट स्थिति पृथिवीकायिक को लक्ष्य करके कहो गई है. क्योंकि अप्कायिक आदि स्थावर जीवो की उत्कृष्ट स्थिति इतनी नहीं है "तसस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" हे भदन्त ! बस जीव की त्रस नाम कर्म के उदय वाले जीव की-भवस्थिति कितनी कही गई है ? "गोयमा ! जहन्नेणं अंतो मुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई" हे गौतम ! सनाम कर्म के उदयवाले त्रस जीव की भवस्थिति जघन्य ४२१। भाटे सूत्र ४ छ. 'थावरस्स णं भंते !" त्याह.. ___ -गौतम स्वामी प्रभुने से पूछ्यु- "थावरस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता स्थावर नामभना या स्थाव२ वानी डेटसा अनी स्थिति
ही छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छे - "गोयमा" हे गौतम "जहण्णेण अंतोमुहत्तं" स्था१२ वानी स्थिति धन्यथा ये मत इतनी सन "उक्कोसेणं" था 'वावीसं वाससहस्साई" मावीस त२ वर्षनी ४ी छे. माउण्ट स्थिति पृथ्वी थिई ને ઉદ્દેશીને કહેવામાં આવી છે. કેમકે–અપૂકાયિક વિગેરે સ્થાવર જીવની ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ मेटली नथी. "तसस्स णं भंते ! केवइयं काल ठिई पण्णत्ता" लन् स पती-स नाम भनी ध्यानी मन स्थिति सामनी ही छ ? "गोयमा जहण्णेणं अंतो महत्तं उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाई" हे गौतम । स नाम भनाइयवाणा अपनी ભવસ્થિતિ જઘન્યથી એક અંતમું ડૂતની અને ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ તેત્રીસ સાગરોપમની કહે