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________________ जीवाभिगमस्त्रे २७८८ पत्तव्या., 'ते समासओ दुविहा पन्नत्ता' ते मत्स्यादयः समासत. --संक्षेपेण द्विविधा.द्विप्रकारकाः प्रज्ञप्ता- कथिता । 'तं जहा' तथा 'पज्जत्ता य अपज्जत्ता य' पर्याप्ताश्च अपर्याप्ताश्च ॥ गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचरजीवाना शरीरादिद्वारजातं दर्शयितुं प्रश्नयन्नाह-'तेसि णं भंते' इत्यादि. 'तेसि णं भते ? जीवाणं' तेषां गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचराणां खलु भदन्त । मत्स्यादिजीवानाम् 'कइ सरीरगा पन्नत्ता' कति--कियसंख्यकानि शरीराणि प्रज्ञप्तानिइति प्रश्न ? भगवानाह- 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! चत्तारि सरीरंगा पन्नत्ता चत्वारि शरीराणि प्रज्ञप्तानि कथितानि, "तं जहा' तद्यथा-'ओरालिए वेउन्विए तेयए कम्मए' औदारिकं वैक्रियं गर्भव्युत्क्रान्तिकानां वैक्रियशरीरस्यापि सभवात् , तैजस कार्मणं चेति चत्वारि शरीराणि भवन्तीति १ । दविहा पन्नत्ता" संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये है "तं जहा" जैसे-“पज्जत्ता य अपज्जत्ता य" पर्याप्तगर्भजजलचर और अपर्याप्त गर्भन जलचर । जिनके अपनी २ योग्य पर्याप्तियां पूर्ण हो जाती है वे पर्याप्त और जिनके कोई भी पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती है वे अपर्याप्त कहलाते है । इनके शरीरादि द्वारो को जानने के लिये गौतम प्रभु से पूछते हैं"तेसि णं भंते जीवाणं कइ सरीरगा पण्णत्ता ?" हे भदन्त ! इन गर्भव्युत्क्रान्तिक जलचर जीवों के कितने शरीर होते हैं । भगवान् कहते हैं-"गोयमा ! चत्तारि सरीरगा पण्णता" इन गर्भज जलचर जीवों के चार शरीर कहे गये हैं-"तं जहा" जैसे-'ओरालिए, बेउ. बिए तेयए, कम्मए" औदारिक, वैक्रिय तेजस और कार्मण गर्भज स्थलचर जीवों के वैक्रिय शरीर भी सभवित हो सकता है। इसलिए यहा क्रिय शरीर को लेकर चार शरीर प्रकट "समासओ दुविहा पण्णत्ता" सपथी में प्रारना सा छे. तं जहा" २ मे । या प्रमाणे छे. "पज्जत्ता य अपज्जत्ता य' पर्याप्त मन सय२ भने सपर्या पर જલચર જેને પિત પિતાની પર્યામિ પૂર્ણ થઈ જાય છે તેઓ પર્યાપ્ત કહેવાય છે, અને જેઓને પર્યાપ્તિ પૂર્ણ હોતી નથી. તેઓ અપર્યાપ્ત કહેવાય છે. હવે તેના શરીર विगैरे द्वारा युवा मार गौतभस्वामी प्रभु ने पूछे छ है-"तेसि णं भते ! जीवाणं कासरीरगा पण्णत्ता" है मगवन् मा गमव्युति: २२ वाटसा शरी२। डाय छ १ मा मनना उत्तरमा प्रभु ४९ छे -"गोयमा! चत्तारि सरीरगा पण्णत्ता" मा गमr सय२ वाने या२ शरी। ४ा छे "तं जहा" ते मी प्रमाणे छे. "ओरा लिए, वेउचिए, तेयप, कम्मए,' महा२ि४, वैठिय, तेस, मन भएन, गर्म १ स्थायर જીને વૈક્રિયશરીર પણ સભવી શકે છે. તેથી અહિયાં વૈકિય શરીરને લઈને ચાર શરીર
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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