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जीवाभिगमसूत्रे
कियभेदाश्चेति प्रश्नः, उत्तरयति - 'सुज परिसप्पसंमुच्छिमथलयरा अणेगविद्या पन्नत्ता' भुजपरिसर्पसं मूर्च्छिमस्थलचरा अनेक विधा :- अनेक प्रकरकाः प्रज्ञप्ताः - कथिताः 'तं जहा ' तथा - 'गोहा नउला जाव' गोधा नकुला यावत् । अत्र यावत्पदेन प्रज्ञापनाया ये मेदाः कथिताः 'सरडा' इत्यादय स्ते एवेहापि वक्तव्याः । अत्र गोधाख्यस्थलचरो जन्तुविशेषः (गोह ) इति प्रसिद्ध नकुला. प्रसिद्धाः, अन्ये सरटादयो लोकाद् देशविशेषाद्वा ज्ञातव्याः । 'जे यावन्ने तहप्पगारा' ये चान्ये तथाप्रकाराः येऽपि गोधा नकुलादिभिन्नाः तत्सदृशाः इनका क्या लक्षण है ? उत्तर में प्रभु कहते है - "भुजपरिसप्पसंमुच्छ्मिथलयरा अणेगfaar पण्णत्ता" हे गौतम । भुजपरिसर्पसंमूच्छिमस्थलचर जीव अनेक प्रकार के कहे गये है, “तं "जहा" जैसे " गोहा नउला जाव" गोधा, नकुल आदि यहां याव - त्पद से प्रज्ञापना में जो भेद कहे गये है वे ही सब यहां वक्तव्य हुए हैं । प्रज्ञापना के पाठ का भाव इस प्रकार से हैं - गोधा - गोह यह स्थलचर जन्तु विशेष हैं नकुल - नेवला यह प्रसिद्ध स्थलचर विशेष जीव है सर्प का और इसका आपस में जन्मजात वैर होता है यह सर्प को देखते ही उसे पकड़ लेता है और उसके टुकडे टुकडे कर देता है । सरट को हिन्दी में गिरघौला कहते हैं यह बैठे बैठे अपने मस्तक को हिलाया डुलाया करता है । यह पेड़ आदि पर चिपका रहता है- "घरोलिया" यह देशविशेष का प्रसिद्ध शब्द है, गुजरात में इसे खिसकोली कहते हैं और हिन्दी में इसे गिलहरी कहते है । “विपंभर" को हिन्दी में "विसभरा" कहते है । यह मकान में दीवाल पर चिपका रहता है । रात्रि में प्रकाश के पास आये हुए पतंगादिको का यह भक्षण करता हैं इनके अतिरिक्त और जो शब्द
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વિગેરે ભુજપરિસપરસ સૂચ્છિ॰મ સ્થલચર જીવ કેટલા પ્રકારના કહેલાછે? તથા તેના सक्षण शुरु छे ? या प्रश्नना उत्तरभां अलु छे - "भुजपरिसप्प संसुच्छ्मिथलयरा अणेगविहा पण्णत्ता" हे गौतम! सुन परिसर्प सभूभि स्थसयर व अने! अारना डेसाधे "तं जहा " ते मा प्रभा छे! “गोहा नउला जाव" घो, नोजिया विगेरे गडियां ચાવદથી પ્રજ્ઞાપના સૂત્રમા જે ભેદે કહેલાછે, તે તમામ લે સમજી લેવાં પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના પાઠને ભાવાર આ પ્રમાણે છે—ગેાધા-ઘા આ સ્થલચર જ તુવિશેષ છે. નકુલ-નાળીયા આ પણ પ્રસિદ્ધ સ્થલચર વિશેષજીવ છે, સર્પને અને આ નાળીયાને જન્મથીજાવર હાય છે. સપને દેખીનેજ આ નાળીયેા તેને પકડીલે છે. અને સપ્ના ટુકડે ટુકડા કરીનાખે છે. સરટ-કાચડા, આ કાંચડા બેઠા બેઠા માથું હલાવે છે, અને તે ઝડ विगेरे पर थांटी रहे छे. घरोलिया" मा देश विशेषभां प्रसिद्ध शब्द छे, गुत्रशतभां जिसमेली हे छे, भने हिडीभां तेने 'गिलहरी' हे छे "विषंभर" ने हिंदीभां "विषभराउ छे भने ते भाननी हिवासी ली तो मां यटिरहेछ भेने गुनशतीभां 'धरेसी' કહે છે. તે રાત્રે પ્રકાશથી આવેલ પતંગો વગેરેને ખાઈ જાય છે. આ શિવાયના ખીજા જે