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________________ ૨૨ जौवाभिगमसंत्रे यणी' घण्णां संहननानामन्यतमेनापि संहननेन नारकजीवाना शरीराणि असंहननानि-संहनन रहितानि तेषां शरीराणि भवन्तीत्यर्थः सूत्रे 'संघयणी' इत्यर्थः पुंस्त्वनिर्देशः प्राकृतत्वात् । कस्मात् संहननरहितानि तेषां शरीराणि भवन्तीति चेत्तत्राह-'णेवट्ठी' इत्यादि, तेषां नारकशरीराणाम् अस्थीनि नैव भवन्ति 'णेव छिरा' नैव शिराः-नाड्यो न भवन्ति तदीयशरीरे ‘णेव पहारु' नैव स्नायवः-अस्थिवन्धनी शिराः स्नायुः कथ्यते ता मपि न भवन्ति इति, 'णेव संघयणमत्थि' नैव संहननमस्ति, अयं भावः-अस्थिनिचयात्मकमेव संहननम् अतोऽस्थ्याधभावात् संहननरहितानि नारकशरीराणि भवन्ति । मुख्यवृत्त्याऽस्थिनिचयात्मकमेव सहननं भवति किन्तु यदपि पूर्वमेकेन्द्रियजीवानां किस संहनन वाले होते है-उत्तर में प्रभु कहते है-'गोयमा.? छण्हं संघयणाणं असंघयणी' हे गौतम ! नारक जीवों के शरीर छह संहननो में से किसी भी सहनन वाले नहीं होते है । अर्थात् इनके शरीर संहनन रहित होते है। इनके शरीर संहनन रहित इसलिये होते है कि इनमें हड़ियाँ नहीं होती है यही बात "णेवट्ठी" सूत्रांश द्वारा प्रकट की गई है । "णेव छिरा" इनमें शिराएँ नाडियां भी नहीं होती. है "णेव हारू" इसमें स्नायुएँ-हड्डियों को बांधने वाली नाडियां भी नहीं होती हैं। इसीलिये "णेव संघयणमस्थि" उनके शरीर को संहनन विहीन कहा गया है। तात्पर्य ऐसा हैअस्थियों के समूह का नाम ही संहनन है । परन्तु यह सब नारक जीव को होता नहीं है । इसी कारण इन्हें असंहनन वाले कहा गया है। मुख्य वृत्ति से अस्थियों का निचय रूप ही सहनन होता हैपरन्तु फिर जो पहिले एकेन्द्रिय जीवों को सेवात सहनन वाला कहा गया है वह औदारिक छ छ-"गोयमा ! छह संघयणाणं असंघयणी" गौतम ना२४ ७वाना शरी२ છ સંહનામાંથી કેઈ પણ હનન વાળા હોતા નથી. અર્થાત તેઓના શરીર સહનન રહિત હોય છે. તેઓના શરીર સંહનન વિનાના હેવાનું કારણ એ છે કે તેઓમાં હાડકા હોતા નથી. मेर पात "णेवट्ठी' मा सूत्रांश द्वारा प्रगट ४२वामा मावी छ "णेव छिरा" तमामा शिसम्मा म नाहीये।५९] ती नथी, "णे वण्हारु" तमामा स्नायुया-डाउन माधपावाजी नाडीया५४ाती नथी तथा “णेव संघयणमत्थि" तयाना शरी। न सहनन વિનાના કહેલ છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે–અસ્થિ-હાડકાના સમૂહનું નામ જ સંહનન છે. પરંતુ તે બધા નારક જીને હાતા નથી. તેજ કારણથી તેઓને અસંહનન વાળા કહ્યા છે. મુખ્ય વૃત્તિથી અસ્થિ-હાડકાના નિચય-સમૂહ રૂપજ સંહનન હોય છે. તે પણ પહેલાં એક ઈન્દ્રિય વાળા જેને સેવા સહનન વાળા જ કહ્યા છે, તે ઔદારિક શરીરના સંબંધના સદ ભાવથી કહેલ છે. તેથી તેઓમા સહનનપણુ ઔપચારિક જ છે. વાસ્તવિક નથી તથા પ્રજ્ઞાપના
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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