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जीवाभिगमसूत्र जहा' इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा-'पुला किमिया जाव समुहलिक्खा' पुलाकृमिका यावत् समुद्र लिक्षाः, अत्र यावत्करणात् इत्थं परिपूर्णपाठो विज्ञेयः-'पुला किमिया कुच्छिकिमिया गंडूलगा गोलोमा नेउरा सोमगला वंसीमुहा सूइमुहा, गोजलोया जलोया जलाउया संखा संखणगा घुल्ला खुल्लागुलया खंधा चराडा सोत्तिया कल्लुया कसा एगतोवत्ता दुहतो वत्ता नंदियावत्ता संवृक्का माइवाहा सिप्पि संपूडा चंदणा समुहलिक्खा' इति, तत्र 'पुलाकिमिया' पायुप्रदेशोद्भवाः कृमयः 'कुच्छिकिमिया' कुक्षौ समुत्पन्नाः लघुकृमयः 'गंड्लगा गण्डोलकाः, तत्रैव समुत्पन्नाः किञ्चिद् बृहत्कायाः कृमय. 'गुडोला' इति प्रसिद्धाः 'गोलोमा' गवां लोम्नि सजाता गोलोमकाः । 'नेउरा' इत्यत आरभ्य समुद्रलिक्षान्ताः सर्वेऽपि द्वीन्द्रिया यथाशास्त्रं विविध्य स्वयमेव विज्ञेया. । 'जे यावन्ने तहप्पगारा' ये चान्ये तथाप्रकाराः, उपर्युक्तद्वीन्द्रिय हैं- "तं जहा" जैसे-"पुला किमिया जाव समुद्दलिक्खा' पुला कृमिका यावत् समुद्रलिक्षा । यहाँ यापत्पद से ऐसा पूरा पाठ गृहीत हुआ जानना चाहिये- "पुलाकिमियां, कुच्छिकिमिया, - गण्डूलगा, गोलोमा, नेउरा, सोमगला, वंसीमुहा, सुइमुहा, गोजलोया, जलोया, जलाउया, संखा, संखणगा, धुल्ला, खुल्ला, वराडा, सोत्तिया, मोत्तिया, कल्लुया, वासा, एगतोवत्ता, दुहतोवत्ता, नंदियावत्ता, संवुक्कामाइवाहासिप्पिसंपुडाचंदणा समुद्दलिक्खा" पायु प्रदेश में - गुदा प्रदेश में जो कृमि उत्पन्न होते है वे "पुलाकिमिय" शब्द से गृहीत हुए है ।जो लघुकृमि उदर में उत्पन्न होते हैं वे कुच्छिकिमि" है । गण्डोलक उदर में ही उत्पन्न होनेवाले कुछ बडे कृमि जो--गंडोलानाम से प्रसिद्ध हैं। जो गायो के रोम में जीव उत्पन्न हो जाते हैं वे गोलोमक हैं । ये सब द्वीन्द्रियजीव हैं । "नेउर" से लेकर तथा "समुद्र लिक्षा तक के समस्त जीव भी द्वीन्द्रिय है और इनका वर्णन शास्त्रानुसार जानलेना चाहिये । इसी प्रकार के जो और भी जीव हैं जो इन्हीं दो इन्द्रिय जीवों के जैसे होते हैं जैसे-मृतक
गौतम ! मेन्द्रियमे पास ! मने प्रारना डाय छ "तं जहा" २ मा प्रमाणे छ - "पुलाकिमिया जाव समुदलिक्खा" yाभि यावत् समुद्र सिक्ष, मडियां यावत्यह मा नाल प्रमाणेन स ६ घडण ४२राय छे. तम सभा "पुलाकिमिया, कुच्छि किमिया, कण्डूलगा गोलोमा, नेउरा, सोमगला, वंसीमुहा, सुइमुहा, गोजलोया, जलोया जलउया, संसा, संखणगा, धुल्ला, खुल्ला, वराडा, सोत्तिया, गोत्तिया, मोत्तिया, कल्लुया, वासा, पगतोनत्ता, दुहतोवचा. नदियावत्ता, संपुक्कामाहवाहा, सिपि संपुडा चंदणा, समुद्दलिखा" वायु प्रदेशमा-गुहाशमा भिया उत्पन्न थाय छे, तने "पुला मिकिया हा छ २मारे सधु भित्पन्न थाय छ त 'कुच्छिकिमिइ उपाय छ पेटभत्पिन्न या वाणा भने प्राणुमा थवा पा ४ मोटा इभिने गंडोलक" नामयी ४ छ आयोनी राममा ने छ पन्न थाय छ, तने "गोलोमक" उपाय छ माया मेन्द्रिय
पाछे “नेउर" थी बने तथा समुद्रलिक्षा' सुधीना બધા જ જી કીન્દ્રિય જી કહેવાય છે. અને તે બધાનું વર્ણન શાસ્ત્ર પ્રમાણે સમજી લેવું
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