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जीवामिगमसूत्र सर्वे वायुकायिकतया प्रतिपत्तव्याः । 'ते समासओ दुविहा पन्नत्ता तं जहा-पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य' ते उपरोक्का वाताः समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकाश्चापर्या. 'ताकाच ॥
सम्प्रति बादरवायुकायिकानां शरीरादि द्वारचिन्तनाय प्रश्नयन्नाह-'तेसि णं भंते ! जीवानां कति शरीराणि प्रज्ञप्तानि कथितानीति शरीरद्वारे प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चत्तारि सरीरंगा पन्नत्ता' चत्वारि शरीराणि प्रज्ञप्तानि-कथितानि 'तं जहा' तद्यथा-'ओरालिए वेउविए तेयए कम्मए' औदारिकं वैक्रियं तैजसं कार्मणं च, एतच्छरीरचतुष्टयं वादरवायुकायिकानां वैक्रियशरीरस्याधिकस्यापि सभवादिति, । 'सरोरगा पडागसंठिया' शरीराणि बादरवायुकायिकानां पताका संस्थानसंस्थितानि भवन्ति । 'चत्तारि समुग्घाया, वेयणासमुग्याए कसायसमुग्याए मरणांतियसमुग्घाए वेउन्धियसमुग्धाए' वात है तथा इनसे भिन्न जो और भी वायु है वे सब वायुकायिक है । ये-वायुकायिक जीव पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से दो प्रकार के हैं ।
अब वादर वायुकायिकों के शरीरादि द्वारों के विषय में गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते है"ते सिणं भंते" ! जीवाणं कइ सरीरगा पन्नत्ता"हे भदन्त ! इन बादर वायुकायिकों के कितने शरीर होते हैं । ऐसा यह शरीरद्वार में गौतम का प्रश्न हैं--इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं "गोयमा ! चत्तारि सरीरगा पन्नत्ता" हे गौतम ! बादर वायुकायिकों के चार शरीर होते हैं "ते जहा" जैसे-"ओरालिए वेउन्विए, तेयए, कम्मए" औदारिक, वैक्रिय, तैजस, और कार्मण यहां वादर वायुकायिक जीवों के एक वैक्रिय शरीर अधिक कहा गया है। क्योंकि उसकी यहां सभावना है । "सरीरंगी पडागसंठिया': इन बादर वायुकायिक जीवों के शरीर सस्थान पताका के जेसा-होता है । "चत्तारि समुग्घाया" इनके चार समुद्घात होते हैं जिनके આ કહેલ પ્રકારથી બીજા પણ જે વાયુઓ હોય છે તે બધા વાયુકાયિકે જ કહેવાય છે. આ વાયુ કાયિક , પર્યાપ્ત અને અપર્યાપ્તના ભેદથી બે પ્રકારના થાય છે
હવે બાદર વાયુકાયિકોના શરીર વિગેરે દ્વારેના સંબંધમાં ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને भूछे छे --"तेसिं णं भंते ! जीवाणं कर सरीरगा पन्नत्ता" मगवन् म ४२ वायुકાયિકાના કેટલા શરીર હોય છે ? આ પ્રમાણે આ શરીર દ્વારના સંબંધમાં ગૌતમ સ્વાभीनी प्रश्न छ. मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतम स्वाभान ४ छ ४--"गोयमा! चत्तारि सरीरंगा पण्णचा" गौतम ! १२ वायुायिटीने यार शश२ डाय छ "तं जहा" ते मा प्रभारी छ. भठे-'ओरालिए, वेउचिए, तेयए, कम्मए," मोती२ि४, छिय, तेस અને કામણ. અહિયાં બાદર વાયુકાયિક જીવોને એક વિયિ શરીર અધિક કહેલ છે. કેમકે मडिया तनी समावना छे. "सरीरगा पढागसंठिया" म मा२ वायुायि छान. शरीरनु सयान पता४।-नारे यछ. "चत्तारि समुग्धाया" मा वायुायि४५वाने