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________________ प्र. १ आहारद्वारनिरूपणम् १०१ न्यपि आहरन्ति, एकगुणशुक्लिमान्यपि आहरन्ति यावदनन्त गुणशुक्त्रिमान्यपि आहरन्ति । 'जाई भावओ गंधमंताई आहारेंति ताई कि एगगंधाई आहारेंति-दुर्गंधाई आहारेंति' यानि द्रव्याणि भावतो गन्धवन्ति आहरन्ति तानि किमेकगन्धानि आहरन्ति अथवा - द्विगन्धानिगन्धद्वयविशिष्टानि आहरन्तीति प्रश्न, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम 'ठाण मग्गणं पडुच्च एगगंधाईपि आहारेंति दुगंधाई पि आहारेंति' स्थानमार्गणं प्रतीत्य सामान्यचिन्तामाश्रित्य एकगन्धान्यपि आहरन्ति, द्विगन्धान्यपि - गन्धद्वय विशिष्टान्यपि आहरन्तीति । एतद्व्यवहारनयमतानुसारेण कथितम् निश्चयनयमतानुसारेण सर्वस्यापि द्रव्यस्य द्विविधगन्धवत्वादिति । 'विहारमग्गणं पडुच्च सुम्मिगंधाई पि माहारेति दुभिगंधाई पि आहारेंति' विधानमार्गेणं प्रतीत्य - विशेषचिन्तामाश्रिय तु सुरभिगन्धान्यपि आहरन्ति तथा दुरभिगन्धा गुण शुक्ल से लेकर यावत् अनन्त गुण शुक्ल से युक्त द्रव्यों का भी वे आहार करते हैं । " जइ भावओ गंधमंताई दव्बाई आहारेति, ताई किं एगगंधाई आहारेति, दुगंधाई आहारेंति, " यदि भाव की अपेक्षा वे गंध युक्त द्रव्यो का आहार करते हैं तो क्या वे एक गंध से युक्त द्रव्यों का आहार करते हैं ? अथवा दो गंध से युक्त द्रव्यों का आहार करते है। उत्तर में प्रभु कहते हैं " गोयमा ! ठाणमग्गणं पडुच्च एगगंधाई पि आहारेंति, दुगधाई पि आहारेति " हे गौतम ! सामान्य विचार की अपेक्षा से वे एक गन्ध वाले द्रव्यों का भी आहार करते है और दो गन्ध वाले द्रव्यो का भी आहार करते हैं । यह कथन व्यवहारनय के मतके अनुसार है । निश्चयनय के मत के अनुसार तो समस्त ही द्रव्य दो प्रकार की गंध वाले होते है । " विहाणमग्गणं पडुच्च सुभिगंधाई पि आहारेंति, दुभिगंधाई पि आहारेंति,” “विशेष विचार की अपेक्षा से वे सुरभिगन्धयुक्तद्रव्यों का भी आहार करते है । और दुरभिगन्धयुक्त द्रव्यों का भी वे आहार करते हैं । "जइ એજ પ્રમાણે એક ગણાથી લઈ ને અન ંત ગણા ગ્રતુણુ કરે છે, અને એક ગણાથી લઇ ને અનંત વાળા દ્રવ્યાને પણ આહાર ગ્રહણ કરે છે, પીળાવ વાળાં દ્રવ્યોના આહાર પણ તેએ ગણુા શુકલતાવાળા દ્રવ્યોના પણુ આહાર ગ્રહણ કરે છે गौतम स्वामीनी प्रश्न - 'जह भावओ गधमताई दव्त्राई आहारेंति, ताईं कि पुगगंधाई आहारेंति, दुगधाई आहारैति ?' ले तेथे भावनी अपेक्षाये गंधयुक्त द्रव्योना આહાર કરે છે, તે શુ તેએ એક ગધવાળા દ્રવ્યોને આહાર કરે છે ? તે એ ગધ વાળા દ્રવ્યાને આહાર કરે છે ? महावीर अलुना उत्तर - "गोयमा ! ठाणमगण पडुच्च एगगंधाई पि आहारेंति, दुगंधाई पि आहारेंति" हे गौतम ! सामान्य दृष्टिखे वियारवामां आवे तो तेथे भे ગધવાળાં દ્રવ્યોના પણ આહાર કરે છે, અને એ ગધવાળાં દ્રવ્યોના આહાર પણ કરે છે. આ કથન વ્યવહાર નયના મત અનુસાર કરવામા આવ્યુ છે. નિશ્ચય નયના મતાનુસાર તે अधा द्रव्यों में प्रभारना गंधवानी होय छे "विहाणमग्गणं पटुच्च सुभिगंधाइ पि आहारेंति, दुभिगंधाई पि अहारेंति" विशेष विचारनी दृष्टि तो तेथे सुरभि गंधू वाणां (સુગંધયુક્ત) દ્રબ્યાનેા પણ આહાર કરે છે, અને દુરભિગ ધવાળાં (દુગ ધયુક્ત) દ્રવ્યેાના પણ
SR No.010388
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages693
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size44 MB
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