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१२] । जीव और कर्म-विचार । - जीवोंके प्राचीन वधे हुए (प्राकवद्ध) कमोके निमित्तसे जीवोंके भावोंमें विलक्षण परिणमन होता है। जिससे जीवोंकी नवीन २ इच्छायें प्रकट होती रहती हैं उन इच्छाओंकी सिद्धि जीव अपने मन चवन कायके द्वारा करता है इसलिये मन वचन कायके व्यापारसे आत्माके प्रदेशोंमें भी सकंप अवस्था होती है। जिस समय आत्माके प्रदेशों में भी सकंप अवस्था होती है। जिस उसी समय संसारमें सवत्र भरे कर्मवर्गणाओंको और बिखतो. पवयको जीप चारों तरफसे अपनी तरफ खोव लेता है बस इसी निमित्तसे कर्मोका संवत्र आत्माके साथ हो जाता है।। .
कभी कभी नवीन निमित्त कारणोंस जीवोके भावों में परिणमना होता है। उस परिणमनमें जीवोंका अज्ञान भाव-(मिथ्यात्य) यदि निशेष सहायक हो- अर्थात् मिथ्यात्वका रस विशेषरूपसे हो तो जीव कोको सुगढ वाचता है-पायोंके निमित्तसे भी जीवोंके भावोंमे विशेष आकुलता होती है। परन्तु सबसे अधिक
- मिथ्यात्वके निमित्तसे होती है । कषायोंमें मिथ्यात्वकायोग हो तो तीव्र रस प्रदान करनेवाले पुद्गल परमाणु ओंका वध, होता है।
“संसारको बढानेवाले पुद्गलोंका संवध जीवको मिथ्यात्वके निमित्तसे ही होता है। जोष अपनी इच्छाको सिद्ध करने के लिये.. मन बचन कायके द्वारा व्यापार करता है वह व्यापार शुभाशुम दोनों ही होता है। परन्तु मोहनीयके निमित्तसे प्रायः अनी व्यापार होता है । हिंखा झूठ-चोरी-कुशील