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________________ - - २८] जीव और फर्म-विचार। मायगी, जो प्रत्यक्ष प्रमाणसे वाधित है। प्रत्यक्ष प्रमाणसे एक शरीरमें एक हो जीवद्रव्य प्रतीति होती है और एक शरीरका स्वामी एक नीच है। __ कदाचित् अनंत चैतन्य ( जोन ) का एकरूप समन्वय कार्य, मानें तो भी पक शरीरमें अनंत-चैतन्यकी सत्ता किमी प्रकार सिद्ध नहीं होता है और न अनन चैतन्य मिलकर समस्त पदार्थों का अनुभव एक साथ प्रकट कर सके हैं। जब परमाणुमें चैतन्य है तो मरण फिसीका नहीं होना वाहिये क्योंकि परमाणुमसे चैतन्यशक्तिका अभाव हो नहीं सका। शरारको छिन्न-भिन्न करने पर, शरीरको जलाने पर भी चैतन्य. शक्तिका नाश नहीं हो सका। क्योंकि परमाणुमें चैतन्य समाय रूपसे माननी पड़ेगी। नित्यरूप और अभिनय माननी पड़ेगी। ____ कदाचित् परमाणुमे चतन्य कभी रहती है भोर कमी नहीं रहती है। कभी चैतन्यशक्ति परमाणुसे भिन्न रहती है भोर कभी भभिन्न रहती है ? ऐसा कहना मी चन नहीं सक्ता हैं ? क्योंकि परमाणुमें (जो मूल कारण पदार्थों की उत्पत्तिका है) नित्य और अनित्य, भिन्न भभिन्नकी कपना करने पर परमाणुमें वन्यशर्षि हो नहीं ठहर सक्ती है। क्योंकि मूल-पदार्थ में भावात्मक भौर . भावात्मक दोनों परस्पर विरुद्ध धर्म ठहर नहीं सक्त है। __ एक समयमें परमाणुमें चतन्य है तो दूसरे समयमें चैतन्य नहीं है ? ऐसा होना असंभव है। क्योंकि प्रथम क्षणमे चैतन्य शक्ति उत्पन्न होनेका कारण क्या ? परमाणुमे नवीन चैतन्यशकि उत्पन्न होनेका कारण मानने पर असत् पदार्थसे प्रादुभाव मानना
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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