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________________ २६1 । जीव और कम विचार। क्रिया अजीव पदार्थमें है। तो भी अजीव पदार्थमे जाननेरूप क्रिया, देखनेरूप क्रिया, सुखके अनुभवन रूप क्रिया, संतोषकप क्रिया, हर्परूप क्रिया, उद्वेगरूप क्रिया इत्यादि प्रकारकी क्रियायें नीवमें ही होती हैं। इस प्रकारकी चैतन्य क्रियाओका स्वामी जीवनामा पदार्थ है । जीव सिवाय जद ( अजीव ) पदार्थमे इस प्रकारकी क्रियाओंका होना असंभव है।। चैतन्यशक्ति जीव पदार्थ में ही है। जीवका चैतन्य लक्षण है। ज्ञान-दर्शनरूप क्रियाको चैतन्य कहते हैं । ज्ञान दर्शन ये दोनों पर्याय चैतन्यस्वरूप जीवद्रव्यमें ही होती हैं। अजीव द्रव्यमें नहीं होती हैं। यदि अजीव द्रव्यमें संयोगसे चैतन्य-शक्तिमान ली जाय तो अजीव-द्रव्य ( पंचभून, पृथ्वी, जल, वायु, तेज, और आकाश) के मूलरूप परमाणुमें वह शक्ति माननी पड़ेगी । पंचभूनके परमाणु. थों (जिनके मिलने पर स्कंध महास्कन्ध और समस्त जगतकी रचना होती है ) मैं चैतन्यशक्ति माननी पडेगी। क्योंकि पर. माणुओंमें जंव तक चैतन्य-शक्ति (ज्ञान दर्शन) की सत्ता सिद्ध न हो जाय तब तक परमाणुओंसे होनेवाले स्कंध शरीर और महां स्कंधोमें चैतन्यशक्ति कहाले आ सकी है ? ___ जैसा बीज होगा वैसा ही वृक्ष होगा। मूल पदार्थमें जो गुण है वे गुण ही तो उसके कार्यमें प्रकट होंगे। ऐसा नहीं होता है कि मूलपदार्थमें गुण नहीं हों और उस मूलसे उत्पन्न होने वाले पदार्थ, घे गुण आ जायं ? जो ऐसा होता हो तो ममूर्तीक से मूर्तीक उत्पन्न होने लगेगा, तो समस्त पदार्थों की
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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