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________________ २६४] बीव और फर्म-विवार । गुणस्थान (क्षीणकपाय) के द्विचरमस्थानमें निद्रा प्रचलाप्रचलाफा क्षय होता है। वारहर्वके अंत समयमें पांच ज्ञानावरण ५ चार दर्शनावरण : पांच अंतराय १४ इस प्रकार चौदह कम प्रकृतियोंका बारहवें गुण स्थानके अंत समयमें क्षय होता है। इस प्रकार घारहवें गुण स्थानमें १६ कर्म प्रकृतिमोंका झप होता है। इस प्रकार वोथे गुण स्थानसे प्रारंभ कर वारहवें गुणस्थान के अंत पयंत ६३ बम प्रकृतियोंका क्षय होता है। तेरहवें गुणस्थानमें किसोभी फर्मप्रकृतिका क्षय नहीं होता है। चौदहवे गुणस्थानके द्विवरमसमय में पान शरीर ५ पाच संघात ५ पांच बंध ५ तोन मांगोपांग २ छह संहनन छह लस्थान ६ पांचवर्ण ५ दो गंध २ पांव रस ५ माठ स्पर्श ८ देवगति १ अपर्याप्ति १ प्रत्येक शरीर स्थिर १ शुभ १ अशुभ १ दुर्भग १ दुस्खर १ सुस्वर १ अनादेय अयश:कीर्ति १ म. साता वेदनी १ अगुरुलघु १ परघात १ उपघात १ उभ्यास १ नीच गोत्र १ निर्माण १ देवगत्यानु पूर्व १ दो विहायोगति २ अनादेय १ इस प्रकार ७२ कम प्रकृतियों का क्षय बोदहा गुण स्थानके द्विचरम लमयमें होता है। चौदहवें गुण स्थानके अंत समयमें आदेय १ मनुष्यगति २ मनुष्यगति मानुष्यं ३ पंचेन्द्रिय जाति ४ मनुष्यायु ५ पर्याप्ति ६ त्रस ७,घादरः ८ सुभग ६ यार कीर्ति १० सातावेदनो ११ गोत्र १२ तीर्थकर १३
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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