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जोव और धर्म विचार ।
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आत्मा के भावोंके निमित्त और वाह्य कारणोंके निमित्तसे पुद्गल परमाणुओंमें जिल प्रकार धर्म रूप होने की शक्ति होती है उसी प्रकार आत्माक स्वाय जनित परिणामों द्वारा व द्रव्य क्षेत्र कालके तीव्रतर निमित्तों द्वारा उन फर्म परमाणुओं में (फर्म प्रकृ तियोंमें) ऐसी शक्ति उत्पन्न होती है जिससे वे जीवों को एक्दम शनका आवरण कर देती है ( अक्षरके यन्न भाग पर्यंत ) या न्यूनाधिक पनासे नावरण कर देती है जिसका फल ( अनुभाग ) मानका नहीं होना है।
अनुभागमें रस शक्तिकी विशेषतासे विशेष फल दान शक्ति होती है । जेंस नीव कत कटुरु है नीवले निरायता कुछ अधिक बटुक है निरायतासे इन्द्रायणकी जड़ अधिक कटुक हे । इन्द्रायजसे कुटको अधिक कटुक है । इसीप्रकार कमोंमें रस भाग शक्तिफी जैसे जैसे विशेषता होगी वैसे २ दो फल दान शक्तिमें विशेषता होगी ।
तीव्र तीव्रतर तीव्रतम आदि भेदोंसे अनेक प्रकारका अनुभाग होगा । इसी प्रकार जैसे २ भात्रों की परणति से कमवन किया है वैसा हो अनुभाग होगा । जघन्य मध्यम उत्कृष्ट परिणामोंके भेद अनन्त है
पर आत्मा के शुभ परिणामों को विशेष प्रकर्तता होनेसे शुभ प्रकृतियोंका ही प्रकर्ष अनुभाग होता है और आत्माके अशुभ परिणामों की प्रकर्षतासे केवल अशुभ प्रकृतियों का ही प्रकर्ष अनुभाग होता है । उभयरूप परिणाम होनेसे मिश्र अनुभाग होता है परिणा