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लीव और कमे-विचार।
आहारक आगोमांग तीर्थंकर फर्म प्रकृनिकी स्थिति सागरो. परकोडाफोडि है।
, 2 .. इससे अवशेष नाम र्मको प्रकृतियों की जघन्य स्थिति सागरोपमफे सात मागमेंसे दो भाग पल्योपम संख्यात माग होना " .
. . . नोट-कर्मोंकी जघन्य स्थितिमें सर्वत्र आवाधा काल भी अंतमुहूर्त है । आवाधाके बिना स्थिति बंध नहीं होता है।
जघन्य स्थिति बंध सामान्य संज्ञो पंचेन्द्रिय जीवोंकी सम. झनी चाहिये । दो इन्द्रिय तीन इन्द्रिय चार इन्द्रिय और असैनी असंही पद्रिय जीवोंकी जघन्य स्थिति आगमसे जानना तो भी सामान्य अपेक्षामं जघन्य ही कहीं पर उत्कृष्ट स्थिति बंध होता हैं। पल्पक सख्यात भाग हीन भी स्थिति बन्ध होता
__ अनुभाग बंध। . -: - जिम प्रकार मेघका पानो क्षुमे रहकर मीठा पन उत्पन्न कर देता है जिसके गुण वैद्यक्रमें भिन्न भिन्न रूपसे बतलाये हैं। इसी प्रकार माहार, रस, उपरस, धातु उपधातु यादिको उत्पन्न करता है जिसका भिन्न भिनाफलसवको अनुभवमें आता है। पदार्शमें जो जो गुण होते हैं उन गुणोंके स्वरूपका अनुभवमें आना मास्वाद में आना वहो उसका फल है।" , :
मदिरा पीनेका फल मद उत्पन होना है। विष भिक्षणका