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: जीव और कर्म विचार ।
पापाचार - कुशील- अन्याय -- अनीति-कपट विश्वासघात मारन ताडन आदि पापकर्मो को कभी नहीं करे ।
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परन्तु जीव इस समय अशुद्ध अवस्थामें है कर्माधीन है इसलिए ऐसा व्यवहार ऐसी नीति और ऐसे आवरणोंको करे जिससे आत्मा अपने स्वरुपको प्राप्त होजाय ! अपने अनंतज्ञान- अनंतदर्शन अनंतवीर्य और अनंत सुख एवं सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र रूप निधिको प्राप्त होजाय । अजर अमर अक्षय अनंत अविनाशी अविनवर नित्य निराबाध-नि प्रकंप मचल वन जाय । इसलिए पुण्यकार्यों की प्राप्तिके लिए उद्योग बरे क्योकि पुण्यके बिना जिनधर्मकी प्राप्ति नही होलकती है, पुण्यके बिना श्रावक कुल प्राप्त नहीं होता है पुण्यके बिना नीरोग शरीर प्राप्त नहीं होता है पुण्यके बिना सप्त परम स्थानोंकी प्राप्ति नहीं होती है पुण्यके विना आचार विचार और धर्मको धारण करनेवाला उत्तम गोत्र प्राप्त नहीं होता है।
पुण्यके बिना निराकुलताके साधन स्त्री पुत्र धन संपदा प्राप्त नहीं होती है। पुण्यके बिना ध्यानके लायक उत्तम संहननोंकी प्राप्ति नहीं होती है। पुण्यके बिना पूर्ण आयु प्राप्त नही होती हैं । पुण्यके बिना मोक्षमार्ग के समस्त साधन प्राप्त नहीं होते हैं पुण्यके 'बिना जगत के परम उपकारी निःकारण चंधु परम पवित्र दिगंबर गुरुओका समागम भी नही होता है जिससे जीव धर्मको ग्रहण कर संसारके दुःखोंसे छूटकर परमसुखको प्राप्त हो । पुन्यके बिना भगवानकी पूजा और सत्पात्र में दान देनेके भात्र तक नहीं