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________________ जीव और कम-विचार १८६ प्रत्येक शरीर नामकर्म-जिस कर्मफे उदयसे जीचॉको पेसा शरीर प्राप्त हो कि जिस शरीरका पक ही जीवात्मा स्वामी हो। मावार्थ-एक शरीरका एक ही आत्मा स्वामी हो । एक शरीरमें एक ही जीव रहता हो । यद्यपि सूक्ष्म जीव मनुप्यके शरीरमें भी मर्माणत है। क्षण क्षणमें उत्पन्न होते है। और क्षणक्षणमें नाशको प्राप्त होते हैं तोभी मनुष्यका शरीर उन छोटे २ सूक्ष्म जीवोंके प्रभावसे न तो बढता है और न घटता है केवल वे सूक्ष्म जीव उसमें आधारभूनसे रहते हैं परन्तु मनुप्यके मूल शरीरको पृद्धि एक जीव आश्रित है। वही जीव उस शरीरका मालिक है। वही मनुष्य पर्यायको प्राप्त हुआ है। इतर जीव मनुष्य-पर्यायको प्राप्त नहीं है। यह दृष्टांतमात्र है परन्तु प्रत्येक नाममका उदय एकंद्रिय जीवमें होता है। साधारण शरीर-जिस कर्मके उदयसे एक शरीरके स्वामी अनेक जीव हों वह शरीर उन समस्त जीवोंके आहारपानसे चढता हो। वे समस्त जीव उस शरीरमें एक साथ जन्म मरण किया करते है माहार ग्रहण करते है और अपना पालन पोपन सब एक साथ ही धरते है भावार्थक शरीरका भोग अनेक जीव फरते हैं। उसको साधारण शरीर कहते है जैसे कंद (मूली-गाजर यालु यादि) में निगोदिया जीवोंका शरीर साधारण शरीर कह. लाता है । दशकद साधारण ही होते हैं वे मिसी अवम्यामें प्रत्येक नहीं होते है। एक निगोद शरीरमें सिद्धराशिके अनंतगुणे जीव रहते हैं । इसलिये कदफा सेवन नहीं करना चाहिये। सुखाकर पकारक खाने में भी अनंत जीपोंको हानि होती है।
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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