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जोव और कर्म विचार ।
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क्योंकि जो मरने पर सर्वथा शरीर रहित हो जाता है । कामे विडको शरीररूप मानने से वह मन्ने पर भी छूटता नहीं है तपश्चरण ध्यान मदिसे ही नष्ट होता है । इसलिये विग्रहगति में भी कार्मण पिंडका आकार रहना है। वह आकार जिस शरीरको छोडकर विग्रहगतिनें आया है उस शरीरका आकार रहना है । कार्मणको शरीर संज्ञा भागममें बतलाई है आकारके विना शरीर होता नहीं है। इसलिये मानुपूर्वी नामकर्म अवश्य ही मानना पडेगा ।
अगुरुच्घु नामकर्म - जिस कर्मके उदयसे जीवोंका शरीर अक्तूल के समान एकदम हलका होकर ऊपरको उड नहीं जाता है और न लोहेके गोलेके समान एकदम भारी होकर नाच पड़ नहीं जाता है उसका अगुरुलघु नामकर्म कहते है ।
उपवास नामकर्म - जिस धर्मके उदयसे जीव अपने शरीर के वंधन से स्वय मर जावे या अपने श्वासोश्वास के विरोध करने पर अपने शरीरकी क्रिया अपने आप ही मृत्यु हो अथवा अपने त्रिकट सींग आदि शरीर के अवयव ही अपने शरीरको घात करनेमें कारण हो वह उपघात नामकर्म है । यह उपघात नाम अग्नि प्रवेश जल प्रपात यादिके द्वारा भी अपने शरीर के द्वारा हो अपने शरीरका घात करता है। जैसे बारहसिंगा के सींग वास आदिमें अटक कर मृत्युके कारण होते हैं ।
परघातनान कर्म - जिस कमके उदयसे जीवोंके शरीरकी रचना ऐसी हो जिससे दूसरे जीवों के शरीरका घात हो दूसरे, जीवों की मृत्यु हो । जैसे सर्प, सर्पके द्वारा बहुतसे नीवोंका घात