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तोच और कार्य-विवार
सरो मोदी जोडे घह मनंतानुबंधी माया कषाय । ____ाराको शल्य माना है। मायाशल्यले सम्यादर्शन और संयम.
पोनों ही सहसा नष्ट होजाते हैं।
पता ही नहीं किंतु माया फवायके प्रभावसे यात्माके परि. पाम सदैव कलुषित-दुष्टभावोंसे मलिन और अंतरंग भावों. की दुर्च खिसे एकदम काले बने रहते है। ___परिणामोंकी गति विलक्षण होतो है उसका ज्ञान सर्वक्ष मग. वानको ही होता है। दूसरे छजस्थ जीव दूसरे जीवोंके परिणामों. की गतिको जान नहीं लत है। ग्यारह मंग और नौपूर्वका पाठी भन्यसेन मुनि कैसा ज्ञानी था-उसके शानकी महिमा सर्वत्र प्रसिद्ध थी। भगवान फुदकुद स्वामी (जो कालिकालमें लाक्षात् तीर्थंकर तुल्य माने जाते हैं) के समयमें एक अंगका भी शान किसी को नहीं था तो ११ अंग और नव-पूर्वका पूर्ण ज्ञान होना कितनी ज्ञानकी उत्कृष्टता है। परंतु ऐसा ज्ञानी मन्यसेत मुनि अनंतानुवंधी मायाकषायके से अनंत संसारी हुगा। उसके मायाचारके कुकृत्योंसे वह समयसेन संशाको प्राप्त हुआ।
क्रोध और मान यह ज्वलंत कपाय है परंतु मायाकषाय यह पानीकी याग्नि है क्रोध और मानसे सो मायालयायक्षा परिणाम गति विषम है। मायापपायके परिणामों में एक प्रकारका ऐसा चिट है जो शरीर और इन्द्रियों कुछ भी विचार नहीं कर केवल सा मात्मायो भागेल ही भू माधको लादेता है जिससे मनुष्य स्व-पश्लेिशको भूल पाता है।