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जोव और संधिवार ।
धर्मके कृत्यों में वाधा हो जाती है। धर्म और अनीतिका प्रचार
से मानकर्मके उदयसे प्रायः होता है। - संसारमें समस्त प्रकार से अनर्थोकी, जड ऐसा मान करना है। - रावणके सर्वख,नाश करने पर भी मानका अंश नष्ट नहीं
गा। अनंतानुबंधी कषायके उदय होनेपर जीव पाप के कार्योंका झी प्रचार करता है। धर्मकी महिमाका नाश करता है, सदावारकी पवित्रताके लोपका ही प्रयत्न करता है।
मान कषायके वशसे जीव शरीर ओर शरीरके सुंदर रूपको हो जात्मा मानकर ससफो ही सर्वोत्कृष्ट सबसे महत्वशाली समझ कर अपनाता है। और उसके लिये सर्व प्रकारको वक्रता धारण करता है । सर्वश्रेष्ठ मानता है। इसप्रकार परपदार्थको ही भा.. हमा समझकर मात गैद्र परिणामोको प्राप्त होता है।
अनंतानुवधी मानसे जीव अनंन जीवोंका बंध-व्यभिचार मान्याय-दुर्नीति जोरजुल्म-अत्याचार और अनेक प्रकारकी आपदा को ऐसा करता है जिससे कि अपना और परमाणीका नाश कर
• बाहु मुनिको ऐसा अभिमान हुना था कि इस दुष्ट ,राजाने अपनी गज्य-सत्ताक मिसानमें पारसौ मुनिको धानीमें पेल दिया है देखें मेरे सामने उसका यह अभिमान कैसे रहता है ऐसा सपने मनमें तिमानकर बाहुमुनि उस राजाकी राजधानी (नगर),
ये और रोजाके स्वभावसे मानको प्राप्त हो क्रोधांध होगये विससे राजा प्रजा और अपना नाशकर यंतमें सातवें नरफरौरव