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गुणोंके प्रकट होने के कारण शनि भिन्न भिन्न है । सम्यग्दर्श वर्क प्रकट होनेका कारण शिव्या अभाव है सम्यग्दर्शनके लाय २हानावरणी फर्मका योभयानफा सानुबंधी कषायका
है और
मिथ्यात्व के अभाव के साथ साथ
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दर्शन
या क्षय ) स्वरुपाचरणचारित्रका कारण है । ६ मिथ्यात्वका अभाव मध्धा भतानुरंधीका असाव सम्यगृहान और सम्यकूलानिके लिये धूल कारण है । अनंतानुवधी रोजिए क्रोधका उदय पाषाणकी रेखाके समान वर मी न हो तर मी कोधका उदय बना रहे। के समान कई भक्त उस क्रोध ( वैर) की वासना नष्ट न हो | दरार उतार जाज्वल्यमान रहे । वाणिक्यके लमान पिवद स्वरूपको धारण कर सत्यानाश करनेको दान गरे। अथवा मधुपिंगल राजा के समाग तर सगर राजा और सुलहाके साथ में मिथ्यात्वका प्रचार किरण पशुयशकं सर्वतजीवों का नाश किया) भवांतर में भी
सर्वकर कोध (
वैर भाव रखकर
प्रवृत्ति का
अनंत संसार में भ्रमण कराता है।
जीव और फर्म- शिवार ।
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लागीरी रेखा एकवार होजाने पर बहुत समय व्यतीत हो पर भी सहसा नष्ट नहीं होती है । इसीप्रकार अनंतानुबंधी क्रोध का उदय होजाने पर उसका वेव रहुत फाल- पर्यंत बना रहत है । अनेक भव- पर्यंत उसका नावे नष्ट नहीं होता है ।
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- इस प्रकारका शोध मिध्यात्वका उदय. कराता है। और मा
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