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________________ नोव और फर्म- विचार । |G कषायोंमें भनंतानुबंधी काय महाविषम है। संसारी प्राणी इस कषायके चश होकर सम्यक्त्वले च्युत हो जाता है, आत्माके सरूपसे गिर जाता है । यतो कषाय मात्र दुःखदायी है परन्तु सबसे विषस कषाय अनंतानुबंधी है । इस कषायके संबंध से आत्मा के परिणामोंमें करता अहंता (अभिमान) विषम मायाचारी और तीव्रतर लोभ होता है । अतानुबंधो कोधसे आत्मा के परिणाम भयंकर होजाते हैं और उसके आवेशमें आकर आत्मा अपनी और दूसरे अनंतजीयोंकी हिंसा एक क्षणमें करलेता है । अपने शांत और क्षमा स्वभाचको भूलकर संतप्त हो जाता है विचार शक्तिको खो बैठता है । विवेकको भूल जाता है और अपने आपे से बाहर होकर हिंसादिक्रूरकर्म करने १ है । इस प्रकार अनंनानुबंधी कषायका बंध अनत संसार पर्यंत चला जाता है और तबतक आत्माके स्वरूपाचरण चारित्रको नाश करदेता है । अनंतानुबंधी कषायका परिणमन दो प्रकार होता है । सबसे मुख्य परिणमन ( रस विपाक) जीवको मिथ्याभावका प्रादुर्भाव होना और दूसरा परिणमन चारित्रको घात करना । इसपरिणमन आत्माके सम्यक्त्व गुण और चारित्र प्रकार इस गुणका घात करना है । वास्तविक विचार किया जाय तो अनंतानुबंधी कषायसे चारित्रगुणका ही घात होता है वह चारित्र स्वरूपावरण चारित्र है.। स्वरुपाचरण चारित्रका अर्थ आत्मस्वरूपकी प्राप्ति करें तो वह
SR No.010387
Book TitleJiva aur Karmvichar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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