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जीव और फर्म रिचार।
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पा कार्य (भावरण) सपने मन-वचन-कायके द्वाग सपादन पिया है, अपने मन-वन फायके पर्तव्य द्वारा जो धर्म यात्माके साय बाध लिये हैं उनका फल बद अवश्य भोगता है।
शुद जीव अप्रतिरुद्ध है। परंतु संसारो जीवका स्वरूप प्रतिरुद्ध है, प्रनिन्दना गनियोंके भेदले भित्र २ का है। हाथोंके शरीरमें वही जीत है। वह वहासे निकल पर सहसा भाग क्यों नहीं जाना ? नरक पर्यायमें घोर दुग्नोको सहन करता है परंतु यहां उसका छुटकारा पायुकेर्ण किये बिना नहीं होता है। यह प्रनिरजना संसारी शुद्धजीवोंमें सतत बनी रहती है जय तफ कमानी सत्ता आत्मामें है।
चाहे हा के शरीरको धारण करने वाला जीव हो अथवा चीटीकी पायो धारण करनेवाला जीव हो। परंतु जीव छोटा घड़ा नहीं है । जितने शुद्ध जीवके प्रदेश है, उनने ही प्रदेश अशुद्ध संसारी जीव फे हे। नो भी अशुद्ध ससारी जीव फार्म के प्रभावले अपने समस्त असंन्यात प्रदेशोंको चींटी या हाथीके शरीर प्रमाण संशोव विस्तारप बना लेता है। परंतु शुद्ध जीवके आत्म. प्रदेशोंमें संगोत्र विस्तार नहीं है, अशुद्ध जीव अपने असं. एयात भात्मप्रदेशोंको इतना गहरा संकोच फरता है कि एक निगोत शरीरमें सिद्धराशि अनंत गुणे जीवोंका शरीर (जीवसहित भरीर ) रह जाता है।
इसी प्रकार अपने प्रदेशोंसो लोकाकाश पर्यंत विस्तार लेता है। जब तक शरीरका संबंध मात्मासे है तब तफ जी